अहमदाहाद
मॉनसून सीजन लगभग शुरू हो गया है। आपने भी बाहर भीगने से बचने को लिए छतरी, रेनकोट का इंतजाम कर लिया होगा। लेकिन झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों के लिए इन सब चीजों का इंतजाम करना आसान नहीं होता। इस मौसम में उनके बच्चों को स्कूल जाने में परेशानी होती है। बारिश में बच्चों की ड्रेस पर कीचड़ लग जाता है और फिर गंदी ड्रेस पहनकर भीगते हुए स्कूल पहुंचते हैं तो टीचर की डांट अलग से सुननी पड़ती है। और बारिश में रोजाना भीगने पर इंफेक्शन और बीमारी का खतरा तो बना ही रहता है। ऐसी हालत में बचाव करने के लिए उन्हें छोटे से उपाय के तौर पर शेयरिंग रेनकोट लाने के लिए कहा जाता है। लेकिन रेनकोट न खरीद पाने वाले बच्चों को अनुज शर्मा घर पर ही नाम मात्र के खर्चे में रेनकोट बनाना सिखा देते हैं।
अनुज शर्मा नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन से 2000 बैच के पास आउट हैं। उन्होंने 2010 में 'बटन मसाला' प्रॉजेक्ट की शुरूआत की। इस के तहत वह बच्चों को बहुत सामान्य सी चीजें जैसे तिरपाल, बटन और रबर बैंड के सहारे रेनकोट बनाना सिखाते हैं। वह कई सारे स्लम इलाकों और कंस्ट्रिक्शन साइट पर जाकर वहां के बच्चों को रेनकोट बनाना सिखाते हैं। रेनकोट एक साथ कई सारे कामों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके माध्यम से बच्चे खुद की हिफाजत करने के साथ और लोगों की मदद करते हैं। साथ ही भविष्य में अगर वो चाहें तो इसके माध्यम से पैसे भी कमा सकते हैं। अभी तक अनुज ने करीब 18 हजार बच्चों रेनकोट बनाना सिखाया है।
अनुज शर्मा ने कहा, 'जब हमने शुरूआत में कंस्ट्रिक्शन साइट्स पर जाकर रेनकोट बांटना शुरू किया तो मेरे मन में ये ख्याल आया कि क्यों न इन बच्चों को बटन मसाला टेक्नॉलजी से रेनकोट बनाना सिखाया जाए। जब मैं इन बच्चों को खुद के लिए रेनकोट बनाने के बाद मुस्कुराते हुए देखता हूं तो मुझे बड़ी खुशी होती है, यही मेरा रिटर्न गिफ्ट है। वह इन्हें इसी टेक्नॉलजी से बैग और जूते बनाना भी सिखाते हैं। अनुज इसी जुलाई में एक इस तरह की एक वर्कशॉप आयोजित करने वाले हैं, जहां वह स्लम एरिया में रहने वाले बच्चों को रेनकोट बनाना सिखाएंगे।
मॉनसून सीजन लगभग शुरू हो गया है। आपने भी बाहर भीगने से बचने को लिए छतरी, रेनकोट का इंतजाम कर लिया होगा। लेकिन झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों के लिए इन सब चीजों का इंतजाम करना आसान नहीं होता। इस मौसम में उनके बच्चों को स्कूल जाने में परेशानी होती है। बारिश में बच्चों की ड्रेस पर कीचड़ लग जाता है और फिर गंदी ड्रेस पहनकर भीगते हुए स्कूल पहुंचते हैं तो टीचर की डांट अलग से सुननी पड़ती है। और बारिश में रोजाना भीगने पर इंफेक्शन और बीमारी का खतरा तो बना ही रहता है। ऐसी हालत में बचाव करने के लिए उन्हें छोटे से उपाय के तौर पर शेयरिंग रेनकोट लाने के लिए कहा जाता है। लेकिन रेनकोट न खरीद पाने वाले बच्चों को अनुज शर्मा घर पर ही नाम मात्र के खर्चे में रेनकोट बनाना सिखा देते हैं।
अनुज शर्मा नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन से 2000 बैच के पास आउट हैं। उन्होंने 2010 में 'बटन मसाला' प्रॉजेक्ट की शुरूआत की। इस के तहत वह बच्चों को बहुत सामान्य सी चीजें जैसे तिरपाल, बटन और रबर बैंड के सहारे रेनकोट बनाना सिखाते हैं। वह कई सारे स्लम इलाकों और कंस्ट्रिक्शन साइट पर जाकर वहां के बच्चों को रेनकोट बनाना सिखाते हैं। रेनकोट एक साथ कई सारे कामों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके माध्यम से बच्चे खुद की हिफाजत करने के साथ और लोगों की मदद करते हैं। साथ ही भविष्य में अगर वो चाहें तो इसके माध्यम से पैसे भी कमा सकते हैं। अभी तक अनुज ने करीब 18 हजार बच्चों रेनकोट बनाना सिखाया है।
अनुज शर्मा ने कहा, 'जब हमने शुरूआत में कंस्ट्रिक्शन साइट्स पर जाकर रेनकोट बांटना शुरू किया तो मेरे मन में ये ख्याल आया कि क्यों न इन बच्चों को बटन मसाला टेक्नॉलजी से रेनकोट बनाना सिखाया जाए। जब मैं इन बच्चों को खुद के लिए रेनकोट बनाने के बाद मुस्कुराते हुए देखता हूं तो मुझे बड़ी खुशी होती है, यही मेरा रिटर्न गिफ्ट है। वह इन्हें इसी टेक्नॉलजी से बैग और जूते बनाना भी सिखाते हैं। अनुज इसी जुलाई में एक इस तरह की एक वर्कशॉप आयोजित करने वाले हैं, जहां वह स्लम एरिया में रहने वाले बच्चों को रेनकोट बनाना सिखाएंगे।