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Gujarat News: सीआईएसएफ कॉन्स्टेबल के सस्पेंशन को सुप्रीम कोर्ट ने ठहराया सही- मॉरल पुलिसिंग की जरूरत नहीं

आरोपी कॉन्स्टेबल अक्टूबर और 27 अक्टूबर, 2001 की दरम्यानी रात लगभग एक बजे जब संबंधित ग्रीनबेल्ट क्षेत्र में ड्यूटी पर तैनात था। वहां से एक शख्स और उनकी मंगेतर मोटरसाइकिल से गुजरे। कॉन्स्टेबल ने कहा कि वह उसकी मंगेतर के साथ कुछ समय बिताना चाहता है।

Edited byशेफाली श्रीवास्तव | भाषा 18 Dec 2022, 11:40 pm
अहमदाबाद: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के एक कॉन्स्टेबल को सेवा से हटाने के अनुशासनात्मक प्राधिकार के आदेश को सही ठहराते हुए कहा है कि पुलिस अधिकारियों को ‘नैतिक पहरेदारी’ करने की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने कहा कि पुलिस अधिकारी अनुचित लाभ लेने की बात नहीं कर सकते। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी की पीठ ने 16 दिसंबर, 2014 के गुजरात हाई कोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें सीआईएसएफ कॉन्स्टेबल संतोष कुमार पांडे की याचिका को स्वीकार कर लिया गया था। बर्खास्त किए जाने की तारीख से 50 प्रतिशत पिछले वेतन के साथ उसे सेवा में बहाल करने का निर्देश दिया गया था।
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पांडे आईपीसीएल टाउनशिप, वडोदरा, गुजरात के ग्रीनबेल्ट क्षेत्र में तैनात था, जहां कदाचार के आरोप में 28 अक्टूबर, 2001 को उसके खिलाफ आरोपपत्र दायर किया गया था। आरोपपत्र के अनुसार, पांडे, 26 अक्टूबर और 27 अक्टूबर, 2001 की दरम्यानी रात लगभग एक बजे जब संबंधित ग्रीनबेल्ट क्षेत्र में ड्यूटी पर तैनात था, तो वहां से महेश बी चौधरी नामक व्यक्ति और उनकी मंगेतर मोटरसाइकिल से गुजरे। पांडे ने उन्हें रोका और पूछताछ की।

कॉन्स्टेबल पर क्या है आरोप?
आरोपों के अनुसार, पांडे ने स्थिति का फायदा उठाया और चौधरी से कहा कि वह उसकी मंगेतर के साथ कुछ समय बिताना चाहता है। आरोपपत्र में कहा गया है कि जब चौधरी ने इस पर आपत्ति जताई तो पांडे ने उनसे कुछ और देने को कहा और चौधरी ने अपने हाथ से घड़ी उतारकर उसे दे दी। चौधरी ने अगले दिन इसकी शिकायत की। सीआईएसएफ ने इस पर उसके खिलाफ जांच की और उसे बर्खास्त कर दिया।

पुलिस को मॉरल पुलिसिंग की जरूरत नहीं
खंडपीठ ने कहा कि उसकी राय में हाई कोर्ट द्वारा दिया गया तर्क तथ्य और कानून दोनों ही दृष्टि से दोषपूर्ण है। खंडपीठ ने कहा, 'दंड की मात्रा के सवाल पर, हमें यह देखना होगा कि वर्तमान मामले में तथ्य चौंकाने वाले और परेशान करने वाले हैं। प्रतिवादी संख्या 1- संतोष कुमार पांडे पुलिस अधिकारी नहीं है, और यहां तक कि पुलिस अधिकारियों को भी नैतिक पहरेदारी करने की जरूरत नहीं है और वे अनुचित लाभ लेने की बात नहीं कह सकते।'

शीर्ष अदालत ने कहा कि तथ्यात्मक और कानूनी स्थिति को देखते हुए, वह सीआईएसएफ द्वारा दायर अपील को स्वीकार करती है और गुजरात हाई कोर्ट के विवादित फैसले को खारिज करती है।
लेखक के बारे में
शेफाली श्रीवास्तव
शेफाली श्रीवास्तव सीनियर डिजिटल कॉन्टेट प्रोड्यूसर हैं। दैनिक भास्कर, नवभारत टाइम्स, गांव कनेक्शन और एनबीटी डिजिटल के साथ पत्रकारिता में 9 साल का अनुभव। पॉलिटिक्स से लेकर, स्पोर्ट्स, हेल्थ, वुमन, वाइल्डलाइफ और एंटरटेनमेंट में रुचि। पत्रकारिता में नए प्रयोगों के साथ सीखने की ललक।... और पढ़ें

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