अहमदाबाद
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गांधीनगर की एक रिसर्च टीम को साबरमती नदी और दो झीलों के पानी के सैंपल्स में कोरोना वायरस की मौजूदगी की सूचना मिली है। अध्ययन में इसका खुलासा नहीं किया गया है कि पानी के नमूनों में पाए गए कोरोना वायरस के जीन मृत थे या जीवित। रिसर्च का नेतृत्व करने वाले प्रोफेसर मनीष कुमार ने भविष्य में किसी भी प्रतिकूल स्थिति को रोकने के लिए इस विषय पर आगे की जांच की आवश्यकता पर जोर दिया है।
इस बात की जानकारी मिलने के बाद अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) ने इन जलाशयों से नमूने गुजरात जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र (जीबीआरसी) को भेजने का फैसला किया है। जल संसाधनों के लिए एएमसी के सिटी इंजीनियर हरपाल सिंह जाला ने कहा, 'जीबीआरसी जल विश्लेषण के लिए एएमसी की अधिकृत एजेंसी है। हम पिछले एक साल से उन्हें नमूने भेज रहे हैं और वे अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपते हैं। हमें आईआईटी के अध्ययन के बारे में कोई जानकारी नहीं है। हालांकि, अब हम इन जलाशयों के नमूने इसी तरह के विश्लेषण के लिए जीबीआरसी को भेजेंगे।'
सितंबर से दिसंबर के बीच की गई स्टडीज
अध्ययन सितंबर और दिसंबर 2020 के बीच किया गया था और शहर की साबरमती नदी, चंदोला और कांकरिया झीलों से पानी के नमूने एकत्र किए गए थे। आईआईटी के अर्थ साइंस विभाग में पढ़ाने वाले कुमार ने कहा, 'हमारा उद्देश्य आरएनए अलगाव के माध्यम से सार्स-सीओवी -2 के एन, एस और ओआरएफ लैब जीन की उपस्थिति का पता लगाना था जिसे कोरोना वायरस भी कहा जाता है।'
पानी से वायरस ट्रांसमिशन होने की पुष्टि नहीं
प्रोफेसर ने कहा, हालांकि कोरोना वायरस के जीन का पता चला है लेकिन हमारी कार्यप्रणाली हमें यह नहीं बताती है कि वे जीवित थे या मृत। हालांकि, हम यह नहीं मान सकते कि वे सभी मर चुके थे। हालांकि पानी के माध्यम से वायरस ट्रांसमिशन अभी तक सिद्ध नहीं हुआ है, संस्थानों को एक साथ आने और इस पर और शोध करने की जरूरत है। निगरानी की जरूरत है। उन्होंने दावा किया कि अगर कोविड-19 रोगियों के मल-मूत्र के माध्यम से कोरोना वायरस जीन सतह के पानी में पहुंचते तो जीन मर चुके होते। हालांकि, जीन जीवित हो सकते हैं यदि वे किसी कोविड -19 रोगी के मुंह से आए हों, जैसे कि गरारे करने वाले पानी के माध्यम से।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गांधीनगर की एक रिसर्च टीम को साबरमती नदी और दो झीलों के पानी के सैंपल्स में कोरोना वायरस की मौजूदगी की सूचना मिली है। अध्ययन में इसका खुलासा नहीं किया गया है कि पानी के नमूनों में पाए गए कोरोना वायरस के जीन मृत थे या जीवित। रिसर्च का नेतृत्व करने वाले प्रोफेसर मनीष कुमार ने भविष्य में किसी भी प्रतिकूल स्थिति को रोकने के लिए इस विषय पर आगे की जांच की आवश्यकता पर जोर दिया है।
इस बात की जानकारी मिलने के बाद अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) ने इन जलाशयों से नमूने गुजरात जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र (जीबीआरसी) को भेजने का फैसला किया है। जल संसाधनों के लिए एएमसी के सिटी इंजीनियर हरपाल सिंह जाला ने कहा, 'जीबीआरसी जल विश्लेषण के लिए एएमसी की अधिकृत एजेंसी है। हम पिछले एक साल से उन्हें नमूने भेज रहे हैं और वे अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपते हैं। हमें आईआईटी के अध्ययन के बारे में कोई जानकारी नहीं है। हालांकि, अब हम इन जलाशयों के नमूने इसी तरह के विश्लेषण के लिए जीबीआरसी को भेजेंगे।'
सितंबर से दिसंबर के बीच की गई स्टडीज
अध्ययन सितंबर और दिसंबर 2020 के बीच किया गया था और शहर की साबरमती नदी, चंदोला और कांकरिया झीलों से पानी के नमूने एकत्र किए गए थे। आईआईटी के अर्थ साइंस विभाग में पढ़ाने वाले कुमार ने कहा, 'हमारा उद्देश्य आरएनए अलगाव के माध्यम से सार्स-सीओवी -2 के एन, एस और ओआरएफ लैब जीन की उपस्थिति का पता लगाना था जिसे कोरोना वायरस भी कहा जाता है।'
पानी से वायरस ट्रांसमिशन होने की पुष्टि नहीं
प्रोफेसर ने कहा, हालांकि कोरोना वायरस के जीन का पता चला है लेकिन हमारी कार्यप्रणाली हमें यह नहीं बताती है कि वे जीवित थे या मृत। हालांकि, हम यह नहीं मान सकते कि वे सभी मर चुके थे। हालांकि पानी के माध्यम से वायरस ट्रांसमिशन अभी तक सिद्ध नहीं हुआ है, संस्थानों को एक साथ आने और इस पर और शोध करने की जरूरत है। निगरानी की जरूरत है। उन्होंने दावा किया कि अगर कोविड-19 रोगियों के मल-मूत्र के माध्यम से कोरोना वायरस जीन सतह के पानी में पहुंचते तो जीन मर चुके होते। हालांकि, जीन जीवित हो सकते हैं यदि वे किसी कोविड -19 रोगी के मुंह से आए हों, जैसे कि गरारे करने वाले पानी के माध्यम से।