गोविंद चौहान, जम्मू
गुरदीप सिंह ने 21 साल पहले अपनी तीन बहनों से वादा किया था कि रक्षाबंधन पर घर आ जाऊंगा। लेकिन इसी बीच कारगिल युद्व शुरु हो गया। जिसके बाद गुरदीप ने चिट्ठी लिखकर अपनी बहनों को कहा कि आना मुश्किल है, क्योंकि हालात बहुत खराब है।
यह खत मिलने के कुछ दिन बाद शहीद गुरदीप सिंह का शव उसके गांव पहुंचा। पूरा गांव उमड पडा। क्योंकि इस गांव में यह सबसे कम आयु का सैनिक था। कश्मीर के सांबा जिले के रामगढ़ इलाके के गांव शेखुपुरा पलोटा का रहने वाला शहीद गुरदीप सिंह 6 जुलाई को कारगिल में शहीद हुआ था। गुरदीप को मरनोपरांत सेना मेडल से नवाजा गया था।
जेब में सिर्फ 110 रूपये थे
जब शहीद का शव घर आया था तो उसकी जेब में 110 रूपये थे। टूटी हुई घडी को आज भी परिजनों ने संभाल कर रखा हुआ है। उसकी वर्दी से लेकर बाकी चीजें जिसमें बचपन के खिलौने, पढाई की किताबें शामिल हैं। सभी सामान को घर में बनाई गई एक अलमारी में रखा हुआ है। ताकि उनका बच्चा हमेशा उनके साथ रहे।
पिता सरदार मोहन सिंह को गर्व है
शहीद के पिता मोहन सिंह तथा माता मंजीत कौर का कहना था कि उन्हें अपने बेटे पर गर्व है जो इतनी कम आयु में देश की रक्षा करने के काम आया। उसे बचपन से ही सेना में भर्ती होने का जोश था। वह पढ़ाई के दौरान हर रोज सुबह दौड़ लगाने के लिए जाता था। दसवीं पास करने के बाद ही पहली भर्ती में सेना में शामिल हो गया। उन्हें इस बात का दुख है कि उनका बेटा आज उनके साथ नहीं है लेकिन इस बात का गर्व भी है कि उनका बेटा देश के काम आया।
शहादत ने युवाओं को प्रेरित किया
गुरदीप के शहीद होने के बाद इस गांव में सेना में भर्ती होने का जज्बा बन गया। इस गांव में आज दो दर्जन से अधिक लोग सेना में भर्ती हैं। जिस समय गुरदीप शहीद हुआ था। वह कम आयु का था। उसकी शाहदत को देखकर गांव के युवाओं में सेना में भर्ती होने का जज्बा पैदा हुआ।
गुरदीप सिंह ने 21 साल पहले अपनी तीन बहनों से वादा किया था कि रक्षाबंधन पर घर आ जाऊंगा। लेकिन इसी बीच कारगिल युद्व शुरु हो गया। जिसके बाद गुरदीप ने चिट्ठी लिखकर अपनी बहनों को कहा कि आना मुश्किल है, क्योंकि हालात बहुत खराब है।
यह खत मिलने के कुछ दिन बाद शहीद गुरदीप सिंह का शव उसके गांव पहुंचा। पूरा गांव उमड पडा। क्योंकि इस गांव में यह सबसे कम आयु का सैनिक था। कश्मीर के सांबा जिले के रामगढ़ इलाके के गांव शेखुपुरा पलोटा का रहने वाला शहीद गुरदीप सिंह 6 जुलाई को कारगिल में शहीद हुआ था। गुरदीप को मरनोपरांत सेना मेडल से नवाजा गया था।
जेब में सिर्फ 110 रूपये थे
जब शहीद का शव घर आया था तो उसकी जेब में 110 रूपये थे। टूटी हुई घडी को आज भी परिजनों ने संभाल कर रखा हुआ है। उसकी वर्दी से लेकर बाकी चीजें जिसमें बचपन के खिलौने, पढाई की किताबें शामिल हैं। सभी सामान को घर में बनाई गई एक अलमारी में रखा हुआ है। ताकि उनका बच्चा हमेशा उनके साथ रहे।
पिता सरदार मोहन सिंह को गर्व है
शहीद के पिता मोहन सिंह तथा माता मंजीत कौर का कहना था कि उन्हें अपने बेटे पर गर्व है जो इतनी कम आयु में देश की रक्षा करने के काम आया। उसे बचपन से ही सेना में भर्ती होने का जोश था। वह पढ़ाई के दौरान हर रोज सुबह दौड़ लगाने के लिए जाता था। दसवीं पास करने के बाद ही पहली भर्ती में सेना में शामिल हो गया। उन्हें इस बात का दुख है कि उनका बेटा आज उनके साथ नहीं है लेकिन इस बात का गर्व भी है कि उनका बेटा देश के काम आया।
शहादत ने युवाओं को प्रेरित किया
गुरदीप के शहीद होने के बाद इस गांव में सेना में भर्ती होने का जज्बा बन गया। इस गांव में आज दो दर्जन से अधिक लोग सेना में भर्ती हैं। जिस समय गुरदीप शहीद हुआ था। वह कम आयु का था। उसकी शाहदत को देखकर गांव के युवाओं में सेना में भर्ती होने का जज्बा पैदा हुआ।