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लॉकडाउन का खौफ, कैसे भी पहुंच जाएं घर, बस में महिला मजदूर को प्रसव पीड़ा, बच्चे को जन्मा

कोरोना की दूसरी लहर की दस्तक के साथ ही प्रवासी मजदूर डर गए हैं। लॉकडाउन की आहट के बीच वह किसी तरह से घर पहुंचने लगे हैं। प्रसव के आखिरी दिनों में महिला मजदूर घर पहुंचने के लिए बस से निकली और रास्ते में बच्चे को जन्म दिया है।

टाइम्सऑफइंडिया.कॉम 12 Apr 2021, 5:02 pm

हाइलाइट्स

हाइलाइट्स
  • दिल्ली-महाराष्ट्र से एमपी लौटने लगे हैं प्रवासी मजदूर
  • 2020 के भयावह मंजर को याद कर इस बार किसी हाल में घर पहुंचना चाहते मजदूर
  • प्रसव के आखिरी दिनों में बस से महिला मजदूर ने की सफर, रास्ते में बच्चे को जन्मा
  • हर दिन हजारों की संख्या में एमपी लौट रहे हैं मजदूर
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भोपाल
उसे पता है कि इसी महीने वह मां बनने वाली है। डॉक्टरों ने मना किया है कि तुम्हें सफर नहीं करना है। अप्रैल के महीने में कभी भी प्रसव पीड़ा शुरू हो सकता है। लॉकडाउन के खौफ के आगे वह बेबस हो गई और आने वाले बच्चे की परवाह न करते हुए अपने पति के साथ घर के लिए निकल गई। बस में प्रसव पीड़ा हुआ और उसने रास्ते में एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में बच्चे को जन्म दिया है। यह कहानी एमपी के छतरपुर जिले की रहने वाली 27 वर्षीय मुन्नी बाई की है।

मुन्नी बाई अपने पति के साथ पन्ना जिले में रहती है। वहीं, रहकर पति काम करते हैं। कोरोना के हालात बेकाबू हैं। वीकेंड लॉकडाउन एमपी में लागू है। मुन्नी बाई और उसके पति को लगता है कि पूरे देश में फिर से लॉकडाउन लग जाएगा। फिर हम कहां कमाएंगे और खाएंगे क्या। इससे पहले हम अपने घर पहुंच जाएं। पिछले साल के मंजर को याद कर एमपी के बाहर रहने वाले मजदूरी ऐसे ही घर वापसी कर रहे।

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कोरोना की दूसरी लहर पहले से ज्यादा खौफनाक है। देश में कई तरह की पाबंदियां लगाई जा रही हैं। दूसरे प्रदेशों में कमाने खाने वाले मजदूर भी अब खौफ के साए में हैं। महाराष्ट्र और दिल्ली से लोग घर लौट रहे। 27 वर्षीय मुन्नी बाई ने रविवार को बस में एक बच्चे को जन्मा है, जब वह मध्यप्रदेश के छतरपुर स्थित अपने घर लौट रही थी। उन्हें जब प्रसव पीड़ा शुरू हुआ तो ड्राइवर गाड़ी को नौगांव स्थित एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ले गया। वह अपने पति हरिशंकर रजक और 15 अन्य लोगों के साथ पड़ोसी जिले पन्ना से घर लौट रही थी।

हरिशंकर ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा कि हमलोग लॉकडाउन से पहले घर लौट जाना चाहते हैं। मैं जानता था कि पत्नी के प्रेग्नेंसी का आखिरी महीना चल रहा है, लेकिन नवरात्रि से पहले हमें घर पहुंचना था।

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चार दिन तक चली थी भूखी-प्यासी
छतरपुर की ही घासी अहिरवार दिल्ली के एक कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करती हैं। उन्होंने बताया कि 'भूखी-प्यासी चार दिन चलकर पिछले साल दिल्ली से घर पहुंची थी, फिर से वो दिन नहीं देखना चाहती हूं।' दिल्ली में कोरोना वायरस तेजी से फैल रहा है, किसी भी वक्त लॉकडाउन की घोषणा हो सकती है।
दूसरे मजदूर रतिराम अहिरवार ने कहा कि कुछ दिन बाद ही नवरात्रि शुरू होने वाली है। हमने सोचा कि दिल्ली में लॉकडाउन लगने से पहले अपने घर पहुंच जाऊं और मां दुर्गा के प्रार्थना करूं।

7.3 लाख मजदूर लौटकर आए थे घर
सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले साल एमपी में 7.3 लाख प्रवासी मजदूर दूसरे राज्यों से लौटकर अपने घर आए थे। इसके साथ ही पांच लाख परिवार भी लौटे थे। इनमें ज्यादातर लोग बुंदेलखंड के जिलों से ताल्लुक रखते हैं। इसमें छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह और सागर जिला शामिल है। इसके साथ ही महाराष्ट्र से भी सीमावर्ती जिले बड़वानी, खंडवा और खरगोन में प्रवासी मजदूर घर लौट रहे हैं।

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इसके साथ ही बिजासन बॉर्डर पर 100 की संख्या में मजदूर बस के जरिए पहुंचे हैं। इसमें ज्यादातर बिहार-यूपी के लोग हैं। कोरोना की वजह से महाराष्ट्र से बसों की आवाजाही बंद है, इसलिए इन्हें बॉर्डर पर ही रोक दिया गया है। बॉर्डर से यह दूसरे सवारियों के जरिए अपने गंतव्य की ओर जाएंगे।

पुणे में वेल्डर के काम करने वाले फरीद ने बताया कि हम अपने 17 लोगों के साथ यूपी के बाराबंकी जा रहे हैं। वहां लॉकडाउन की वजह से कोई काम नहीं है। वहीं, दूसरे मजदूर संदीप जायसवाल ने बताया कि हमारे पास वहां कुछ बचा नहीं था इसलिए घर लौटना पड़ रहा है।

इसी तरह से रघुवीर और पुरन दास महाराष्ट्र के अहमदनगर से कानपुर स्थित अपने घर बाइक से लौट रहे हैं, साथ में उनका परिवार भी है। दोनों वहां कुल्फी का करोबार करते हैं लेकिन कोरोना की वजह से बंद है।

लॉकडाउन से पहले घर पहुंच गई हूं।' ये कहना लॉकडाउन की आहट से घबराकर अपने घर लौटी घासी अहिरवार का है। ऐसा ही हाल मुन्नीबाई का भी है। मुन्नी कुछ दिन बाद ही मां बनने वाली थी। पता था कि प्रसव पीड़ा कभी भी शुरू हो सकता है। लॉकडाउन के भय से बस में सवार होकर घासी दिल्ली में एक कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करती है। पिछले साल लॉकडाउन के बाद दिल्ली में फंस गई थी। चार दिन पैदल चलकर लौटी है।

एक साल बाद फिर से सड़कों पर वहीं दिन लौट आए हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि पिछली बार मजदूर पैदल वापस लौट रहे थे, इस बार बसों और ट्रेनों में भर-भरकर एमपी के मजदूर दिल्ली और महाराष्ट्र से वापस एमपी लौट रहे हैं।

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