भोपाल
कहा जाता है कि इच्छाओं का कोई अंत नहीं होता है। एमपी में ‘माननीय’ लोगों का भी यही हाल है। कमलनाथ सरकार गिराने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस के जिन 22 विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया था, उसमें से पांच मंत्री भी थे। कहा जाता है कि विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के वक्त इनकी एक शर्त यह थी कि इनके स्टेटस को बहाल रखा जाए।
यानी कि वे विधानसभा के सदस्य न होते हुए मंत्री बने रहना चाहते थे। बीजेपी को अपनी सरकार बनाने के लिए अपनी यह शर्त मंजूर करनी पड़ी थी। संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार बगैर किसी सदन का सदस्य हुए भी किसी को अधिकतम छह महीने के लिए मंत्री बनाया जा सकता है। यह माना गया था कि इस बीच उप चुनाव हो जाएंगे और यह सभी लोग फिर से चुनाव जीत ही जाएंगे, इसलिए उन्हें आगे मंत्री बनाए रखने में किसी तरह का संकट नहीं रहेगा।
100 की स्पीड से फॉरच्यूनर दौड़ा रही थी युवती, ब्रेक की जगह दबा एक्सीलेटर, तो सड़क पर मचा कोहराम
तीन मंत्री हार गए चुनाव
उप चुनाव में तीन मंत्री चुनाव हार गए। अब चुनाव हारकर भी यह ‘माननीय’ मंत्री वाला रुतबा बनाए रखना चाहते हैं। इसके लिए अब वे अपने ‘आका’ के जरिए बीजेपी टॉप लीडरशिप पर कोई रास्ता निकालने का दबाव बना रहे हैं। इसी के मद्देनजर सीएम शिवराज चौहान आयोगों और निगमों खाली पड़े पदों की लिस्ट बनाने में जुट गए हैं, जहां इन हारे हुए लोग को एडजस्ट कर उनके लिए ‘लाल बत्ती’ का इंतजाम कर दें।
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इन लोगों के लिए भी करना है जुगाड़
सीएम को लाल बत्ती का इंतजाम उनके लिए भी करना है, जिनके उप चुनाव में टिकट काटकर कांग्रेस से आए लोगों को दे दिए गए थे। शिवराज को पता है कि अगर उनके लिए लाल बत्ती का इंतजाम नहीं हुआ, तो फिर वे लोग बहुत दिनों तक चुप होकर बैठने वाले नहीं हैं। फिर उनसे निपट पाना इतना आसान नहीं होगा।
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ये लोग कर रहे हैं इंतजार
ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे से इमरती देवी, एंदल सिंह कंसाना, गिर्राज दंडोतिया मंत्री रहते हुए चुनाव हार गए हैं। इसके साथ ही उनके दो अहम करीबी गोविंद सिंह राजपूत और तुलसी सिलावट चुनाव जीत कर भी शिवराज कैबिनेट में नहीं हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने पिछले दौरे के दौरान तमाम समर्थकों के साथ सीएम शिवराज सिंह चौहान से उनके आवास पर जाकर मुलाकात की थी।
कहा जाता है कि इच्छाओं का कोई अंत नहीं होता है। एमपी में ‘माननीय’ लोगों का भी यही हाल है। कमलनाथ सरकार गिराने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस के जिन 22 विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया था, उसमें से पांच मंत्री भी थे। कहा जाता है कि विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के वक्त इनकी एक शर्त यह थी कि इनके स्टेटस को बहाल रखा जाए।
यानी कि वे विधानसभा के सदस्य न होते हुए मंत्री बने रहना चाहते थे। बीजेपी को अपनी सरकार बनाने के लिए अपनी यह शर्त मंजूर करनी पड़ी थी। संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार बगैर किसी सदन का सदस्य हुए भी किसी को अधिकतम छह महीने के लिए मंत्री बनाया जा सकता है। यह माना गया था कि इस बीच उप चुनाव हो जाएंगे और यह सभी लोग फिर से चुनाव जीत ही जाएंगे, इसलिए उन्हें आगे मंत्री बनाए रखने में किसी तरह का संकट नहीं रहेगा।
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