गढ़चिरौली/नागपुर
महाराष्ट्र के सुदूर गढ़चिरौली जिले की रहने वाली 20 साल की सरोजना बुद्धा को इस बात का अंदाजा तक नहीं था कि पहले बच्चे को जन्म देना उसके लिए जिंदगी और मौत का विषय बन जाएगा। डिलीवरी के वक्त नवजात के सिर का हिस्सा तो बाहर आ गया लेकिन बाकी शरीर फंस गया। इसी हालत में महिला ने 60 किलोमीटर का सफर तय किया। गर्भवती सरोजना मंगलवार को डिलिवरी के लिए गढ़चिरौली के अहेरी तालुका की जिमुलगट्टा पीएचसी में पहुंची, जहां एकमात्र नर्स की मौजूदगी थी। कई घंटे की कोशिश के बावजूद नजवात को बाहर निकालने में सफलता नहीं मिली। यह पूरी घटना ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों और स्वास्थ्यकर्मियों की चुनौतियों की बानगी भर है।
मेडिकल ऑफिसर और एक सीनियर नर्स के कोविड पॉजिटिव होने और इस वजह से आइसोलेट होने की वजह से नर्स अकेली थी। गर्भवती महिला दोपहर के वक्त पीएचसी पहुंची लेकिन देर शाम तक मशक्कत के बाद स्थिति गंभीर होती देख उसे अहेरी उप जिला अस्पताल ले जाने का फैसला किया गया।
महिला, परिजन और नर्स एम्बुलेंस से देर रात हॉस्पिटल के लिए निकले। रास्ते भर सबकी सांसें अटकी रहीं। रात में 11 बजकर 55 मिनट पर बच्चे के जन्म के बाद ही सबने राहत की सांस ली। लेकिन नवजात को आईसीयू में रखना पड़ा। सरोजना के भाई ने बताया कि थोड़ी और देरी होने पर स्थिति गंभीर हो सकती थी। रास्ता भी खराब था। शुक्र है सब कुशल मंगल है।
जिला स्वास्थ्य अधिकारी डॉक्टर शशिकांत शम्बारकर ने कहा कि गर्भवती महिला को शिफ्ट करने का फैसला डिलिवरी में हुई रुकावट की वजह से लिया गया था। उन्होंने बताया, 'हमारी नर्स भी महिला के साथ एम्बुलेंस में ही थी। उन्होंने पहले खुद से प्रयास किया और असफल रहने पर बड़े हॉस्पिटल में ले जाने का फैसला किया।'
महाराष्ट्र के सुदूर गढ़चिरौली जिले की रहने वाली 20 साल की सरोजना बुद्धा को इस बात का अंदाजा तक नहीं था कि पहले बच्चे को जन्म देना उसके लिए जिंदगी और मौत का विषय बन जाएगा। डिलीवरी के वक्त नवजात के सिर का हिस्सा तो बाहर आ गया लेकिन बाकी शरीर फंस गया। इसी हालत में महिला ने 60 किलोमीटर का सफर तय किया।
मेडिकल ऑफिसर और एक सीनियर नर्स के कोविड पॉजिटिव होने और इस वजह से आइसोलेट होने की वजह से नर्स अकेली थी। गर्भवती महिला दोपहर के वक्त पीएचसी पहुंची लेकिन देर शाम तक मशक्कत के बाद स्थिति गंभीर होती देख उसे अहेरी उप जिला अस्पताल ले जाने का फैसला किया गया।
महिला, परिजन और नर्स एम्बुलेंस से देर रात हॉस्पिटल के लिए निकले। रास्ते भर सबकी सांसें अटकी रहीं। रात में 11 बजकर 55 मिनट पर बच्चे के जन्म के बाद ही सबने राहत की सांस ली। लेकिन नवजात को आईसीयू में रखना पड़ा। सरोजना के भाई ने बताया कि थोड़ी और देरी होने पर स्थिति गंभीर हो सकती थी। रास्ता भी खराब था। शुक्र है सब कुशल मंगल है।
जिला स्वास्थ्य अधिकारी डॉक्टर शशिकांत शम्बारकर ने कहा कि गर्भवती महिला को शिफ्ट करने का फैसला डिलिवरी में हुई रुकावट की वजह से लिया गया था। उन्होंने बताया, 'हमारी नर्स भी महिला के साथ एम्बुलेंस में ही थी। उन्होंने पहले खुद से प्रयास किया और असफल रहने पर बड़े हॉस्पिटल में ले जाने का फैसला किया।'