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जैसलमेर: रामदेव बाबा के मंदिर में घोड़ा चढ़ाते हैं श्रद्धालु

सोमवार को राजस्थान के श्रीगंगानगर से आए श्रद्धालु वीरेंद्र वाल्मीकि ने जैसलमेर के रामदेवरा कस्बे में स्थित मशहूर रामदेव बाबा मंदिर में घोड़ा चढ़ाया। दूर-दराज तक यह मंदिर घोड़ों को चढ़ाने के लिए प्रसिद्ध है। काफी साल पहले यहां आने वाले भक्त कपड़ों से बना घोड़ा बाबा को चढ़ाते थे...

टाइम्स न्यूज नेटवर्क 28 Aug 2018, 2:32 pm
विमल भाटिया, जैसलमेर
नवभारतटाइम्स.कॉम RAMDEV HORSE
घोड़ा चढ़ाने पहुंचे श्रद्धालु

सोमवार को राजस्थान के श्रीगंगानगर से आए श्रद्धालु वीरेंद्र वाल्मीकि ने जैसलमेर के रामदेवरा कस्बे में स्थित मशहूर रामदेव बाबा मंदिर में घोड़ा चढ़ाया। दूर-दराज तक यह मंदिर घोड़ों को चढ़ाने के लिए प्रसिद्ध है। काफी साल पहले यहां आने वाले भक्त कपड़ों से बना घोड़ा बाबा को चढ़ाते थे लेकिन कुछ वर्षों से मंदिर में जीवित घोड़ों को चढ़ाने का सिलसिला चल रहा है। रामदेवरा मेला समिति ने घोड़ों को रखने के लिए एक अस्तबल भी बनाया है। उनकी अब कई प्रजातियां यहां मौजूद हैं।

करीब 650 वर्ष पहले बाबा रामदेव का जन्म एक शाही परिवार में हुआ था। उन्होंने जाति प्रथा को खत्म करने का संदेश दिया था, साथ ही मंदिर के दरवाजे गरीबों के लिए भी खोल दिए थे। इसी के बाद से जीवित घोड़ों को चढ़ावे के रूप में भेंट करने की परंपरा शुरू हुई। रामदेव के एक अनुयायी सवाई सिंह तंवर का कहना है, 'जब यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी होने लगीं, तो उन्होंने घोड़ों के चढ़ावे की शुरुआत की। पिछले दो साल के दौरान राजस्थान के अलावा गुजरात और पंजाब के भक्तों ने भी यहां घोड़े चढ़ाए हैं।'

बाबा रामदेव समाधि समिति ने घोड़ों के लिए एक रुनीचा कुएं का इंतजाम किया है, जहां उनकी देखभाल की जाती है। इन घोड़ों का ध्यान रखने के लिए एक विशेषज्ञ की नियुक्ति भी की गई है। मुंहमांगी मुराद पूरी होने पर पहले मंदिर में कपड़े से बने घोड़ों को चढ़ाने की प्रथा थी। स्थानीय लोगों का कहना है कि बाबा रामदेव लीला नाम के एक घोड़े की सवारी करते थे। ऐसा बताया जाता है कि बाबा रामदेव के निधन के बाद उनका घोड़ा प्रसिद्ध हो गया। इसलिए एक नई परंपरा की शुरुआत हुई। रामदेव की समाधि पर हर साल समाज के हर तबके और धर्म के तकरीबन एक करोड़ श्रद्धालु मत्था टेकने के लिए आते हैं।

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