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Rajasthan Vidhansabha चुनाव में Tonk से आसान नहीं होगी Sachin Pilot की उड़ान, पढ़िए यह खास रिपोर्ट आखिर ऐसा क्यों?

Sachin Pilot News: राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 में पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट फिर से ताल ठोकने वाले हैं। लेकिन यदि टोंक से ही वो चुनाव फिर से लड़ेंगे तो उनके लिए यहां से उड़ान भरना आसान नहीं होगा। यहां के राजनीतिक समीकरण क्या कह रहे हैं? क्या मुश्किलें पायलट को चुनौती देने वाली हैं? यहां पढ़ें...

guest Manish-Kumar-Bagari | Lipi 24 Feb 2023, 9:48 am

हाइलाइट्स

  • राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की अगली राजनीतिक पारी आसान नहीं
  • करीब 4 साल तक सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनने की आस में व्यस्त रहे
  • पायलट टोंक विधानसभा क्षेत्र से लोगों की पहुंच से काफी दूर रहे
  • टोंक से ही 41 वर्षीय पायलट ने अपना पहला विधानसभा चुनाव 2018 में लड़ा
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नवभारतटाइम्स.कॉम rajasthan vidhan sabha chunav 2023 tonk seat analysis and sachin pilot political challenges
टोंक : राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट (sachin pilot) की टोंक में अगली राजनीतिक पारी आसान नहीं होगी। टोंक से उनकी आगे की राजनीति को लेकर अब कुछ सवाल उठते दिखाई दे रहे हैं। करीब 4 साल तक सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनने की आस में व्यस्त रहे, लेकिन उनका यह सपना पूरा नहीं हो पाया। नतीजा यह रहा पायलट टोंक विधानसभा क्षेत्र (Tonk Assembly Seat) से लोगों की पहुंच से काफी दूर रहे। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सचिन पायलट वापस टोंक से चुनाव लड़ने का मन बनाएंगे? क्या टोंक की जनता वापस सचिन पायलट पर अपना विश्वास दिखा पाएगी? इन सभी बातों पर अगर गौर किया जाए तो, वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए पायलट का टोंक से चुनाव लड़ना काफी मुश्किल प्रतीत होता हुआ नजर आ रहा है।

41 वर्षीय पायलट ने अपना पहला विधानसभा चुनाव 2018 में टोंक विधानसभा क्षेत्र से लड़ा। पायलट का मुख्यमंत्री के लिए बड़ा चेहरा होने के कारण चुनाव में उन्हें प्रचार के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी। इस बार कांग्रेस पार्टी ने अपने 46 साल पुराने रिकॉर्ड को तोड़कर मुस्लिम उम्मीदवार की जगह सचिन पायलट को उम्मीदवार बनाया। इस चुनाव में उन्होंने वसुंधरा राजे के खास लोगों में शामिल यूनुस खान को 54,179 मतों से शिकस्त दी थी।
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विकास की आस में पायलट पर जताया भरोसा


सचिन पायलट कांग्रेस पार्टी में मुख्यमंत्री का चेहरा थे। बस इसी आस में टोंक के वाशिंदों ने पायलट पर अपना भरोसा जताया। दूसरी ओर करीब 50 से 60 हजार मुस्लिम मतदाताओं ने भी बीजेपी के मुस्लिम उम्मीदवार यूनुस खान को दरकिनार कर पायलट पर भरोसा किया। इसी तरह बीजेपी विचारधारा के मतदाताओं ने भी बिना सामने आए पायलट को ही समर्थन दिया। लेकिन इन 4 सालों में टोंक के लोगों का जो सपना था। वह अधूरा ही रहा। लिहाजा पायलट पर भरोसा जताने वाले मतदाता अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। मतदाताओं को आस थी कि पायलट मुख्यमंत्री बनेंगे और टोंक के विकास को पंख लगेंगे। लेकिन यह बात मिथक साबित हुई।
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गहलोत से विवाद को ही लेकर फंसे रहे पायलट


जब पायलट ने टोंक विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा। तब लोगों की उनसे काफी उम्मीदें थी। अव्वल तो विधानसभा चुनाव के दौरान पायलट अधिकतर राजस्थान में चुनावी कैंपेन के दौरान व्यस्त रहें। इसके चलते उन्होंने टोंक की जनता से कोई खास वादे नहीं किए। लेकिन यहां के लोगों को भरोसा था कि मुख्यमंत्री बनने के बाद टोंक को कई बड़ी सौगातें मिलेंगी। लेकिन पायलट के पूरे 4 साल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से विवाद में ही बीत गए और टोंक की जनता को कुछ खास नहीं मिल सका। जहां टोंक के लोगों को पायलट की जरूरत थी। वहां पायलट अपना समय नहीं दे पाए। हालांकि कुछ आयोजनों में पायलट ने टोंक में अपना शक्ति प्रदर्शन जरूर कर आलाकमान को दिखाया। लेकिन इसका टोंक के लोगों को कोई फायदा नहीं मिला।
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क्या ओवैसी की नसीहत मानेंगे पायलट?


AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने टोंक आने से पहले यहां की नब्ज को पूरी तरह से टटोल लिया था। टोंक में मुस्लिम वोटों को देखते हुए ओवैसी भी अब टोंक में अपने पांव जमाने की तैयारी कर रहे हैं। इन 4 सालों में टोंक की जनता और मुस्लिम मतदाताओं की उपेक्षा को देखकर ओवैसी भी अब इस मौके को भुनाना चाहते हैं। ओवैसी भी अब समझ गए हैं कि पायलट के लिए वापस टोंक से चुनाव लड़ना आसान नहीं होगा। इसीलिए तो उन्होंने जनसभा में पायलट को इस बार गुर्जर बाहुल्य सीटों से चुनाव लड़ने की नसीहत दे डाली। हालांकि ओवैसी के बयान के बाद सचिन पायलट ने ज्यादा तवज्जो नहीं दिया। उनका कहना था कि लोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने का अधिकार है। सवाल उठता है कि क्या वाकई में पायलट के लिए टोंक से रास्ता मुश्किल होने वाला है? क्या इन सब परिस्थितियों को देखते हुए सचिन पायलट ओवैसी की नसीहत को ध्यान में रखते हुए अपना निर्णय लेंगे? खैर इन सभी सवाल के जवाब अभी भविष्य के गर्भ में हैं।
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अपने ही टोंक में पायलट को कर सकते हैं प्रभावित


पायलट को टोंक से चुनाव लड़ने को लेकर कहीं न कहीं यह आशंका भी है कि उनके अपने ही पार्टी के लोग चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं। आपको बता दें कि जोधपुर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत लोकसभा का चुनाव हार गए थे। इसके बाद गहलोत ने हार के लिए पायलट को दाएं बाएं से जिम्मेदार बताया था। इसके चलते पूरी 4 साल तक दोनों नेताओं के बीच जमकर बवाल मचा रहा। ऐसे में टोंक विधानसभा का जयपुर से सीधा नजदीकी जुड़ाव होने के चलते पायलट कोआशंका है कि कहीं टोंक चुनाव लड़ने के दौरान उन्हें इसका खामियाजा उठाना ना पड़ जाए। लिहाजा ऐसी स्थिति में सचिन पायलट भी अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए सुरक्षित स्थान की खोज में रहेंगे।

टोंक में मुस्लिम और गुर्जर मतदाता ही करते हैं निर्धारण


टोंक विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं के आंकड़ों की बात की जाए तो, यहां कुल दो लाख से ऊपर मतदाता है। इस आंकड़े में दो ही वर्ग का बाहुल्य है। जो यहां चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार की किस्मत का निर्धारण करते हैं। इनमें सबसे ज्यादा मुस्लिम वर्ग जो, अब करीब 55 से 60 हजार मतदाताओं के करीब पहुंच गया है। जबकि दूसरा बाहुल्य गुर्जर वर्ग है। जिसके करीब 30 हजार के आसपास मतदाता है। इसके अलावा टोंक में माली समाज के भी अच्छी संख्या में मतदाता हैं। जबकि शेष मतदाता ओबीसी, एसटी, एससी और सामान्य वर्ग के हैं।
रिपोर्ट- मनीष बागड़ी
लेखक के बारे में
सम्ब्रत चतुर्वेदी
नवभारत टाइम्स डिजिटल के सहायक समाचार संपादक। पत्रकारिता में राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, नेटवर्क18 जैसी संस्थाओं के बाद टाइम्स इंटरनेट तक 17 साल का सफर। देश-प्रदेश, खेल और शिक्षा, कला एवं संस्कृति जगत में खास रुचि। डिजिटल माध्यम के नए प्रयोगों में दिलचस्पी के साथ सीखने की सतत ललक...... और पढ़ें

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