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स्टालिन: चुनाव प्रचारक से डीएमके 'बॉस' तक, जानें पूरा सफर

डीएमके नेता और दिवंगत करुणानिधि के बेटे एम.के. स्टालिन को अब निर्विरोध पार्टी का नया अध्यक्ष चुन लिया गया है। पार्टी अध्यक्ष तक पहुंचने का सफर स्टालिन के लिए आसान नहीं रहा है।

भाषा 28 Aug 2018, 11:12 pm
चेन्नै
नवभारतटाइम्स.कॉम एम.के. स्टालिन (फाइल फोटो)
एम.के. स्टालिन (फाइल फोटो)

डीएमके नेता और दिवंगत करुणानिधि के बेटे एम.के. स्टालिन को अब निर्विरोध पार्टी का नया अध्यक्ष चुन लिया गया है। पार्टी अध्यक्ष तक पहुंचने का सफर स्टालिन के लिए आसान नहीं रहा है। आपातकाल के बुरे दिनों में चुनावों के दौरान प्रचार करने वाले किशोर से लेकर करीब पांच दशकों तक अपने पिता करुणानिधि की पार्टी की अब बागडोर संभालने वाले एम के स्टालिन ने राजनीति में बहुत से उतार-चढ़ाव को देखा है।

65 वर्षीय स्टालिन के डीएमके प्रमुख बनने के साथ ही द्रविड़ पार्टी में एक नए युग की शुरुआत हो गई है। स्टालिन अपने पिता के बाद पार्टी के अध्यक्ष बनने वाले महज दूसरे व्यक्ति हैं। साल 1969 में करुणानिधि को डीएमके अध्यक्ष चुना गया था। पार्टी के संस्थापक सीएन अन्नादुरई के निधन के कारण उन्हें यह पद मिला था।

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करुणानिधि अपने बेटे का नाम अय्यादुरई रखना चाहते थे, जिसमें से 'अय्या' तर्कवादी नेता दिवंगत ईवी रामसामी पेरियार (जिन्हें अय्या कहा जाता था) से लिया गया और दुरई पार्टी संस्थापक 'अन्नादुरई' से लिया गया। पर, 1953 में सोवियत नेता जोसेफ स्टालिन के निधन के बाद उन्होंने अपना मन बदल लिया। नास्तिक करुणानिधि ने उसी वर्ष जन्मे अपने बेटे का नाम कम्युनिस्ट नेता के नाम पर स्टालिन रख लिया।

आपातकाल में गए जेल
किशोरावस्था से ही राजनीति में कूदे स्टालिन ने 1967 के विधानसभा चुनाव में डीएमके के लिए प्रचार किया और तेजी से पार्टी में उनका कद बढ़ता गया। आपातकाल के दौरान उन्हें कठोर आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था (मीसा) अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया और जेल भेज दिया गया।

1989 में पहली बार बने विधायक
स्टालिन के मीसा के दिनों के कारण ही डीएमके के महासचिव के. अंबाझगन ने पार्टी की महापरिषद की बैठक में जेल में बंद रहने के दौरान उनकी कई अनगिनत परेशानियों के बारे में बताया। वर्षों बाद स्टालिन ने 1984 में ना केवल पार्टी की युवा इकाई की कमान संभाली बल्कि 1989 में विधायक भी बने।

भ्रष्टाचार का भी लगा आरोप

स्टालिन छह बार के विधायक हैं। डीएमके के गढ़ वाली चेन्नै कॉर्पोरेशन के मेयर के तौर पर 1996-2001 के दौरान स्टालिन ने ट्रैफिक जाम कम करने के लिए कई फ्लाइओवरों के निर्माण के लिए काम किया। हालांकि बाद में इन्हीं कामों ने उनके लिए परेशानियां खड़ी कर दी। 2001 में एआईएडीएमके सत्ता में लौटी तो सरकार ने स्टालिन और करुणानिधि पर फ्लाइओवरों के निर्माण में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया। इसी के संबंध में उन्हें आधी रात को गिरफ्तार किए जाने की घटना भी शामिल है।

2009 में उपमुख्यमंत्री बने स्टालिन
वर्ष 2006 तक स्टालिन का कद और अधिक बढ़ गया और उन्होंने अपने पिता के मंत्रिमंडल में मंत्री के रूप में पदार्पण किया। उन्हें 2009 में उपमुख्यमंत्री बनाया गया। इसी समय स्टालिन और उनके बड़े भाई एमके अलागिरी के बीच उत्तराधिकारी की लड़ाई शुरू हो गई। अलागिरी भी ख्याति पा रहे थे और वे केंद्रीय मंत्री थे। हालांकि, करुणानिधि ने स्पष्ट कर दिया कि उनकी विरासत स्टालिन ही संभालेंगे।

...और भाइयों में पैदा हो गया मतभेद
भाइयों के बीच दुश्मनी की पराकाष्ठा तब हुई जब करुणानिधि ने कथित पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए अलागिरी को 2014 में डीएमके से निकाल दिया। इससे स्टालिन के लिए आगे का रास्ता साफ हो गया। पार्टी भी स्टालिन की तरफ खड़ी दिखाई दी।

तमिल फिल्मों और धारावाहिकों में भी किया काम
स्टालिन ने आधिकारिक तौर पर भले ही मंगलवार को पार्टी की विरासत संभाली लेकिन वह करुणानिधि की खराब सेहत के कारण पिछले कुछ वर्षों से पार्टी चला रहे थे। स्टालिन के नेतृत्व में डीएमके 2014 में एक भी संसदीय सीट नहीं जीत पाई लेकिन 2016 के विधानसभा चुनाव में उसने विपक्षी खेमे की 98 सीटों में 89 सीटों पर जीत दर्ज की। स्टालिन ने 80 के दशक में कुछ तमिल फिल्मों और टीवी धारावाहिकों में भी काम किया है।

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