दीप्ति संजीव, मंगलुरु
दक्षिण कन्नड़ का यह परिवार बेलटंगैडी के अपने गांव में 5.5 एकड़ खेतों में 157 से ज्यादा धान की वरायटी के संरक्षण के लिए काम कर रहा है। उनकी इस उपलब्धि को हाल ही में नैशनल इनोवेशन फाउंडेशन की तरफ से सराहा गया। बीके देवा राव और उनके परिवार को नैशनल इनोवेशन फाउडेंशन ने 'सृष्टि सम्मान' से सम्मानित किया। परिवार की इस गौरवशाली विरासत को आगे बढ़ाने के लिए बीके देवा राव के बेटे परमेश्वर राव ने BHEL में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर की नौकरी छोड़ दी, ताकि वह अपने पिता की फसलों की वरायती के संरक्षण के मिशन में मदद कर सकें।
2012 से वह एक ऐसे एनजीओ से जुड़े हुए हैं जो कृषि के विकास और धान की वरायटी के संरक्षण के लिए काम करता है। वह नागरिक सेवा ट्रस्ट से जुड़े हैं और उसके माध्यम से 'सीड बैंक' विकसित किया है।
परमेश्वर कहते हैं, '1977 तक हमारे पास 40 वरायटी थे। उस समय हमने रासायनिक खादों का पहली बार इस्तेमाल किया और करीब 10 सालों तक उनका प्रयोग किया। लेकिन वरायटी की संख्या घट गई। इसके बाद हमने रासायनिक खादों का इस्तेमाल बंद कर दिया।'
बाद में परिवार ने सीड बैंक बनाने का फैसला किया। परिवार ने राज्य के बाहर से भी धान की वरायटी को इकट्ठा करना शुरू कर दिया और 50-60 और वरायटी का संरक्षण किया। आज परिवार के पास धान की 157 वरायटी मौजूद है। उनका खेत कृषि विज्ञान के छात्रों, शोधकर्ताओं और कृषि वैज्ञानिकों के लिए स्टडी का केंद्र बन चुका है। बड़ी तादाद में छात्र, शोधकर्ता और विशेषज्ञ उनके खेतों में स्टडी के लिए आते हैं। परिवार के पास धान की ऐसी वरायटी है जो सामान्य से ज्यादा उत्पादन देती हैं और जिन्हें पानी की भी कम जरूरत पड़ती है।
दक्षिण कन्नड़ का यह परिवार बेलटंगैडी के अपने गांव में 5.5 एकड़ खेतों में 157 से ज्यादा धान की वरायटी के संरक्षण के लिए काम कर रहा है। उनकी इस उपलब्धि को हाल ही में नैशनल इनोवेशन फाउंडेशन की तरफ से सराहा गया। बीके देवा राव और उनके परिवार को नैशनल इनोवेशन फाउडेंशन ने 'सृष्टि सम्मान' से सम्मानित किया। परिवार की इस गौरवशाली विरासत को आगे बढ़ाने के लिए बीके देवा राव के बेटे परमेश्वर राव ने BHEL में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर की नौकरी छोड़ दी, ताकि वह अपने पिता की फसलों की वरायती के संरक्षण के मिशन में मदद कर सकें।
2012 से वह एक ऐसे एनजीओ से जुड़े हुए हैं जो कृषि के विकास और धान की वरायटी के संरक्षण के लिए काम करता है। वह नागरिक सेवा ट्रस्ट से जुड़े हैं और उसके माध्यम से 'सीड बैंक' विकसित किया है।
परमेश्वर कहते हैं, '1977 तक हमारे पास 40 वरायटी थे। उस समय हमने रासायनिक खादों का पहली बार इस्तेमाल किया और करीब 10 सालों तक उनका प्रयोग किया। लेकिन वरायटी की संख्या घट गई। इसके बाद हमने रासायनिक खादों का इस्तेमाल बंद कर दिया।'
बाद में परिवार ने सीड बैंक बनाने का फैसला किया। परिवार ने राज्य के बाहर से भी धान की वरायटी को इकट्ठा करना शुरू कर दिया और 50-60 और वरायटी का संरक्षण किया। आज परिवार के पास धान की 157 वरायटी मौजूद है। उनका खेत कृषि विज्ञान के छात्रों, शोधकर्ताओं और कृषि वैज्ञानिकों के लिए स्टडी का केंद्र बन चुका है। बड़ी तादाद में छात्र, शोधकर्ता और विशेषज्ञ उनके खेतों में स्टडी के लिए आते हैं। परिवार के पास धान की ऐसी वरायटी है जो सामान्य से ज्यादा उत्पादन देती हैं और जिन्हें पानी की भी कम जरूरत पड़ती है।