ऐपशहर

मर्जी से साथ रहने वाले कपल के जीवन में दखल देने का अधिकार किसी को नहींः हाई कोर्ट

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अंतरधार्मिक विवाह के एक मामले पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार को कहा कि जब दो बालिग लोगों ने एक साथ रहने का फैसला किया हो तो उनके जीवन में किसी को भी दखल देने का आधिकार नहीं है।

भाषा 8 Jan 2021, 11:38 pm

हाइलाइट्स

  • इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा, मर्जी से साथ रहने वाले कपल के जीवन में दखल नहीं दे सकते
  • अंतरधार्मिक विवाह करने वाले कपल की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने की टिप्पणी
  • कपल ने परिवार से जान को खतरा बताते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट में दायर की है याचिका
सारी खबरें हाइलाइट्स में पढ़ने के लिए ऐप डाउनलोड करें
नवभारतटाइम्स.कॉम सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर
प्रयागराज
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अंतरधार्मिक विवाह करने वाले दंपती की याचिका पर सुनवाई करते हुए एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि अगर दो वयस्क अपनी इच्छा से साथ रह रहे हों तो कोई भी अन्य व्यक्ति उनके जीवन में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। कोर्ट ने शाइस्ता परवीन उर्फ संगीता और उनके मुस्लिम पति द्वारा दायर रिट पर सुनवाई करते हुए ये बातें कहीं।
जस्टिस सरल श्रीवास्तव ने कहा कि इस अदालत ने कई बार यह व्यवस्था दी है कि जब दो बालिग व्यक्ति एक साथ रह रहे हों, तो किसी को भी उनके शांतिपूर्ण जीवन में दखल देने का अधिकार नहीं है। गौरतलब है कि याचिका के मुताबिक, प्रथम याचिकाकर्ता शाइस्ता परवीन उर्फ संगीता ने मुस्लिम धर्म अपनाने का निर्णय किया था और धर्म परिवर्तन के बाद उसने एक मुस्लिम व्यक्ति से शादी की जो द्वितीय याचिकाकर्ता है। दोनों ही याचिकाकर्ताओं ने वयस्क होने का दावा किया है।

परिजन से बताया जान को खतरा
उन्होंने आरोप लगाया है कि उनके परिजन से उनकी जान को खतरा है। दोनों ने ही अपनी शादीशुदा जिंदगी में परिजन के लिए हस्तक्षेप नहीं करने का निर्देश जारी करने की अदालत से गुहार लगाई है। उनका दावा है कि वे वयस्क हैं और अपनी इच्छा से साथ रह रहे हैं। कोर्ट ने अपने इस आदेश में लता सिंह के मामले को आधार बनाया, जिसमें युवक और युवती ने अंतरजातीय विवाह किया था और उन्हें उनके परिजन द्वारा परेशान किया जा रहा था।

कोर्ट की टिप्पणी
लता सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के प्रशासन और पुलिस अधिकारियों को निर्देश जारी करते हुए कहा था, 'यह एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश है और जब एक व्यक्ति वयस्क हो जाता है तो वह जिससे चाहे विवाह कर सकता/सकती है। यदि युवक या युवती के माता-पिता इस प्रकार के अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाह को मंजूरी नहीं देते हैं तो वे अधिक से अधिक अपने बेटे या बेटी से सामाजिक रिश्ता खत्म कर सकते हैं, लेकिन उन्हें धमकी नहीं दे सकते या उनका उत्पीड़न नहीं कर सकते।' ये निर्देश पारित करते हुए अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई की तिथि 8 फरवरी, 2021 निर्धारित की।

अगला लेख

Stateकी ताजा खबरें, ब्रेकिंग न्यूज, अनकही और सच्ची कहानियां, सिर्फ खबरें नहीं उसका विश्लेषण भी। इन सब की जानकारी, सबसे पहले और सबसे सटीक हिंदी में देश के सबसे लोकप्रिय, सबसे भरोसेमंद Hindi Newsडिजिटल प्लेटफ़ॉर्म नवभारत टाइम्स पर
ट्रेंडिंग