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What is Time Capsule: राम मंदिर ही नहीं, कभी इंदिरा ने लालकिले के नीचे डलवाया था टाइम कैप्सूल

अयोध्या में राम मंदिर की नींव में 200 फीट नीचे जिस टाइम कैप्सूल (Ram Mandir) को डालने का फैसला किया है, उसमें आज के भारत की कहानी से लेकर इसके ऐतिहासिक महत्व की सांस्कृतिक, राजनीतिक और अन्य सामयिक जानकारियां हैं। हालांकि इतिहास पर नजर डालें तो साल 1973 में पूर्व पीएम इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने भी ऐसा ही एक टाइम कैप्सूल लाल किले के 32 फीट नीचे डलवाया था।

नवभारतटाइम्स.कॉम 28 Jul 2020, 9:17 am
अयोध्या में राम मंदिर के 200 फीट नीचे एक कंटेनर के रूप में डाला गया टाइम कैप्सूल कुछ सदियों के बाद एक ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में जाना जाएगा। टाइम कैप्सूल को एक ऐसे ऐतिहासिक महत्व के दस्तावेज के रूप में जाना जाता है, जिसमें किसी काल की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक स्थिति का उल्लेख हो। भारत में पहले भी ऐसे टाइम कैप्सूल ऐतिहासिक महत्व की इमारतों की नींव में डाले जा चुके हैं। साल 1973 में इंदिरा गांधी सरकार ने लालकिले की नींव में ऐसा ही एक टाइम कैप्सूल डाला था। इसे कालपत्र का नाम दिया गया था। विपक्ष के लोगों ने आरोप लगाया था कि इस कालपत्र में इंदिरा ने अपने परिवार का महिमामंडन किया है। हालांकि इंदिरा सरकार के इस कालपत्र में क्या लिखा था, उसका राज आज तक नहीं खुला। पढ़ें उस खास टाइम कैप्सूल की पूरी कहानी....
नवभारतटाइम्स.कॉम story of time capsule laid by indira gandhi in foundation of lal quila
What is Time Capsule: राम मंदिर ही नहीं, कभी इंदिरा ने लालकिले के नीचे डलवाया था टाइम कैप्सूल


तब सफलता के शिखर पर थीं इंदिरा गांधी

साल 1970 के शुरुआती दिनों की बात है। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सफलता के चरम पर थीं। उनकी ताकतवर शख्सियत ने भारत की राजनीति को नया आकार देने में मदद की थी। उस समय उन्होंने लाल किले के परिसर में टाइम कैप्सूल दफन करवाया था। इस बारे में Netaji: Rediscovered नाम की किताब में डिटेल से बताया गया है। इस किताब को कनाईलाल बासु ने लिखा है।

आजादी के बाद के 25 साल की कहानी लिखी

सरकार चाहती थी कि आजादी के 25 साल बाद की स्थिति को संजोकर रखा जाए। इसके लिए टाइम कैप्सूल बनाने का आइडिया दिया गया। आजादी के बाद 25 सालों में देश की उपलब्धि और संघर्ष के बारे में उसमें उल्लेख किया जाना था। इंदिरा गांधी की सरकार ने उस टाइम कैप्सूल का नाम कालपात्र रखा था।

इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टॉरिकल रिसर्च को जिम्मेदारी

अतीत की अहम घटनाओं को दर्ज करने का काम इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्ट्रिकल रिसर्च (आईसीएचआर) को सौंपा गया था। मद्रास क्रिस्चन कॉलेज के इतिहास के प्रफेसर एस.कृष्णासामी को पूरी पाण्डुलिपि तैयार करने का काम सौंपा गया था। लेकिन इसको पूरा होने से पहले ही प्रॉजेक्ट विवादों में फंस गया।

15 अगस्त 1973 को लाल किले में दफन किया

कहा जाता है कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 15 अगस्त, 1973 को इसे लाल किले के परिसर में दफन किया था। इसके बाद इस कालपात्र पर विवाद की स्थितियां बनने लगीं।

इंदिरा गांधी पर वंश का महिमामंडन करने का आरोप

इस कालपात्र को लेकर उस समय काफी हंगामा मचा था। विपक्ष का कहना था कि इंदिरा गांधी ने टाइम कैप्सूल में अपना और अपने वंश का महिमामंडन किया है। जनता पार्टी ने चुनाव से पहले लोगों से वादा किया कि पार्टी कालपात्र को खोदकर निकालेगी और देखेगी कि इसमें क्या है।

मोरारजी देसाई ने टाइम कैप्सूल को बाहर निकलवाया

1977 में कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। सरकार गठन के कुछ दिनों बाद टाइम कैप्सूल को निकाला गया लेकिन जनता पार्टी की सरकार ने इस बात का खुलासा नहीं किया कि उस टाइम कैप्सूल में क्या था। फिलहाल अभी तक उसके बारे में कुछ पता नहीं चल सका।

PMO ने कहा- हमें टाइम कैप्सूल के बारे में पता नहीं

साल 2013 में इकनॉमिक्स टाइम्स में छपी एक खबर के मुताबिक, प्रधानमंत्री कार्यालय ने टाइम कैप्सूल के बारे में जानकारी होने से इनकार किया था। लेखक मधु पूर्णिमा किश्वर ने इस संबंध में सूचना मांगी थी। पीएमओ के जवाब पर उस समय के मुख्य सूचना आयुक्त सत्यनंद मिश्रा ने भी हैरत का इजहार किया था। उनका कहना था कि टाइम कैप्सूल के बारे में जब दफनाने की बात कही जा रही है, उस दौरान अखबारों में इस बारे में काफी कुछ छपा था। उसके बावजूद पीएमओ का यह जवाब हैरान करने वाला है। उन्होंने पीएमओ को इसके रेकॉर्ड को नए सिरे से खंगालने का निर्देश दिया था और जरूरत पड़ने पर नैशनल आर्काइव और एएसआई की मदद लेने को भी कहा था।

नरेंद्र मोदी पर सीएम रहते लगे थे आरोप

नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो साल 2011 में उन पर भी टाइम कैप्सूल दफनाने का विपक्ष ने आरोप लगाया था। विपक्ष का कहना था कि गांधीनगर में निर्मित महात्मा मंदिर के नीचे टाइम कैप्सूल दफनाया गया है जिसमें मोदी ने अपनी उपलब्धियों का बखान किया है।

क्या होता है टाइम कैप्सूल?

टाइम कैप्सूल एक कंटेनर की तरह होता है जिसे विशिष्ट सामग्री से बनाया जाता है। टाइम कैप्सूल हर तरह के मौसम का सामना करने में सक्षम होता है, उसे जमीन के अंदर काफी गहराई में दफनाया जाता है। काफी गहराई में होने के बावजूद भी हजारों साल तक न तो उसको कोई नुकसान पहुंचता है और न ही वह सड़ता-गलता है।30 नवंबर, 2017 में स्पोन के बर्गोस में करीब 400 साल पुराना टाइम कैप्सूल मिला था। यह यीशू मसीह के मूर्ति के रूप में था। मूर्ति के अंदर एक दस्तावेज था जिसमें 1777 के आसपास की आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सूचना थी।

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