बागपत
आरएलडी मुखिया चौधरी अजित सिंह के निधन से उनके परिवार, पार्टी कार्यकर्ताओं और उनके समर्थकों में शोक की लहर है। कोरोना से संक्रमित होने के बाद मंगलवार को उनके फेफड़ों में संक्रमण बढ़ गया था जिसके बाद उन्हें गुरुग्राम के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया। यहां गुरुवार सुबह 6 बजे अजित सिंह ने अंतिम सांस ली। अजित सिंह बागपत से सात बार लोकसभा सांसद रहे। चौधरी चरण सिंह के बाद 1980 में सत्ता पर जैसे ही चौधरी अजीत सिंह ने अपना कदम रखा तो पश्चिम के लोगों ने उनको 'छोटे चौधरी' के रूप में अपने दिलों में जगह दी। उनके एक-एक फैसले को लाखों लोगों का समर्थन मिलता था। गन्ने भुगतान और नहरों में पानी की राजनीति ने उन्हें पश्चिम यूपी का एक ऐसा नेता बनाया जिसके बिना कोई भी महापंचायत नहीं होती थी।
जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे
वर्ष 1986 में राज्यसभा सदस्य के तौर पर अजित सिंह ने संसद में प्रवेश किया था और सात बार लोकसभा सदस्य भी रहे। 1987 में उन्होंने पहला फैसला लिया था जब उन्होंने लोक दल (अजित) के नाम से लोक दल के अलग गुट का निर्माण किया था। उनके इस फैसले के बाद लोकदल का जनाधार बढ़ा और कई पार्टियों के विलय से बनाई गई जनता पार्टी का उनको अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
इसके बाद जनता पार्टी, लोक दल और जन मोर्चा के विलय के साथ जनता दल का गठन हुआ तब चौधरी अजित सिंह ही इसके महासचिव चुने गए। विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व वाली सरकार में चौधरी अजित सिंह 1989-90 तक केंद्रीय उद्योग मंत्री रहे। चौधरी अजित सिंह का करिश्मा ऐसा था कि किसी बड़ी पार्टी के नेता न होकर भी वह पश्चिम यूपी की राजनीति में वजन रखते थे।
1999 में किया आरएलडी का गठन
1998 में अजित सिंह को पहली बार बागपत लोकसभा सीट से बीजेपी नेता सोमपाल सिंह शास्त्री से हार मिली थी। 1999 में अजित सिंह ने राष्ट्रीय लोकदल का निर्माण किया। जुलाई 2001 के आम-चुनावों में इस दल का एनडीए में विलय हो गया। अजित सिंह को कैबिनेट मंत्री के तौर पर कृषि मंत्रालय का पदभार सौंपा गया लेकिन गठबंधन ज्यादा दिन नहीं चल सका। मुलायम सिंह यादव के सत्ता में आने के बाद अजित सिंह ने 2007 तक उन्हें अपना समर्थन दिया लेकिन किसान नीतियों में मतभेद के चलते उन्होंने अपना समर्थन वापस ले लिया।
मुजफ्फरनगर दंगों ने बदली पश्चिम यूपी की राजनीति
सत्त पक्ष में रहकर चौधरी अजित सिंह हरित प्रदेश की लडाई लड़ते रहे। वह चाहते थे कि अगर पश्चिम को हरित प्रदेश बना दिया जाता है तो उनको सत्ता से कोई नहीं हटा सकता। एक तो यह क्षेत्र जाट बहुल क्षेत्र था, दूसरा इस क्षेत्र को आरएलडी का गढ़ कहा जाता था लेकिन मुजफ्फरनगर के दंगों ने यहां की राजनीति के समीकरण बदल दिए। 2014 लोकसभा चुनाव में बागपत से अजित सिंह को दूसरी बार हार झेलनी पड़ी। 2019 में उन्होंने मुजफ्फरनगर सीट चुनी लेकिन यहां भी उन्हें शिकस्त मिली।
आरएलडी मुखिया चौधरी अजित सिंह के निधन से उनके परिवार, पार्टी कार्यकर्ताओं और उनके समर्थकों में शोक की लहर है। कोरोना से संक्रमित होने के बाद मंगलवार को उनके फेफड़ों में संक्रमण बढ़ गया था जिसके बाद उन्हें गुरुग्राम के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया। यहां गुरुवार सुबह 6 बजे अजित सिंह ने अंतिम सांस ली। अजित सिंह बागपत से सात बार लोकसभा सांसद रहे।
जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे
वर्ष 1986 में राज्यसभा सदस्य के तौर पर अजित सिंह ने संसद में प्रवेश किया था और सात बार लोकसभा सदस्य भी रहे। 1987 में उन्होंने पहला फैसला लिया था जब उन्होंने लोक दल (अजित) के नाम से लोक दल के अलग गुट का निर्माण किया था। उनके इस फैसले के बाद लोकदल का जनाधार बढ़ा और कई पार्टियों के विलय से बनाई गई जनता पार्टी का उनको अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
इसके बाद जनता पार्टी, लोक दल और जन मोर्चा के विलय के साथ जनता दल का गठन हुआ तब चौधरी अजित सिंह ही इसके महासचिव चुने गए। विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व वाली सरकार में चौधरी अजित सिंह 1989-90 तक केंद्रीय उद्योग मंत्री रहे। चौधरी अजित सिंह का करिश्मा ऐसा था कि किसी बड़ी पार्टी के नेता न होकर भी वह पश्चिम यूपी की राजनीति में वजन रखते थे।
1999 में किया आरएलडी का गठन
1998 में अजित सिंह को पहली बार बागपत लोकसभा सीट से बीजेपी नेता सोमपाल सिंह शास्त्री से हार मिली थी। 1999 में अजित सिंह ने राष्ट्रीय लोकदल का निर्माण किया। जुलाई 2001 के आम-चुनावों में इस दल का एनडीए में विलय हो गया। अजित सिंह को कैबिनेट मंत्री के तौर पर कृषि मंत्रालय का पदभार सौंपा गया लेकिन गठबंधन ज्यादा दिन नहीं चल सका। मुलायम सिंह यादव के सत्ता में आने के बाद अजित सिंह ने 2007 तक उन्हें अपना समर्थन दिया लेकिन किसान नीतियों में मतभेद के चलते उन्होंने अपना समर्थन वापस ले लिया।
मुजफ्फरनगर दंगों ने बदली पश्चिम यूपी की राजनीति
सत्त पक्ष में रहकर चौधरी अजित सिंह हरित प्रदेश की लडाई लड़ते रहे। वह चाहते थे कि अगर पश्चिम को हरित प्रदेश बना दिया जाता है तो उनको सत्ता से कोई नहीं हटा सकता। एक तो यह क्षेत्र जाट बहुल क्षेत्र था, दूसरा इस क्षेत्र को आरएलडी का गढ़ कहा जाता था लेकिन मुजफ्फरनगर के दंगों ने यहां की राजनीति के समीकरण बदल दिए। 2014 लोकसभा चुनाव में बागपत से अजित सिंह को दूसरी बार हार झेलनी पड़ी। 2019 में उन्होंने मुजफ्फरनगर सीट चुनी लेकिन यहां भी उन्हें शिकस्त मिली।