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इलेक्ट्रिक शवदाह निगम के हवाले, अब चालू करवाने के लिए स्टाफ के लाले

प्राकृतिक सहयोग से जिले की हवा जरूर साफ हो जाती है, लेकिन प्रशासनिक कार्रवाई का कोई खास असर नहीं दिखता है। अधिकारियों की लापरवाही के चलते प्रदूषण ...

Navbharat Times 4 Dec 2019, 8:00 am

Akhandpratap.singh@timesgroup.com

गाजियाबाद : प्राकृतिक सहयोग से जिले की हवा जरूर साफ हो जाती है, लेकिन प्रशासनिक कार्रवाई का कोई खास असर नहीं दिखता है। अधिकारियों की लापरवाही के चलते प्रदूषण नियंत्रण के लिहाज से जरूरी उपायों पर भी अमल नहीं हो पाता है। पेड़ों को कटने से बचाने और प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए जिले में पहला इलेक्ट्रिक शवदाह गृह बना तो दिया गया है, लेकिन अब तक इसे चालू नहीं करवाया जा सका है। पर्यावरणविदों का कहना है कि अगर इसे चालू कर दिया जाता, तो प्रदूषण स्तर कम करने में इससे भी मदद मिलती।

जीडीए ने इलेक्ट्रिक शवदाह बनाकर नगर निगम के हवाले कर दिया है, लेकिन ट्रेंड स्टाफ नहीं होने की वजह से अभी उसे चालू नहीं किया जा सका है। निगम अधिकारियों ने नगर आयुक्त को पत्र लिखकर ट्रेंड स्टाफ की डिमांड की है। अभी हिंडन नदी के किनारे लकड़ी की चिता पर शवदाह किया जाता है। इससे पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाता है। इसके चलते इलेक्ट्रिक शवदाह गृह का निर्माण किया गया है, लेकिन अभी तक प्रशासनिक अमला इसे शुरू करवाने को लेकर जागरूक नहीं है। पर्यावरणविद विक्रांत शर्मा का कहना है कि लकड़ी से शवों को जलाने से पर्यावरण को बहुत क्षति होती है। पहले इसके धुएं से प्रदूषण फैलता है और साथ ही लकड़ी के इंतजाम के लिए पेड़ भी काटने पड़ते हैं। ऐसे में प्रदूषण स्तर कम करने के लिए इलेक्ट्रिक शवदाह गृह काफी कारगर हो सकता है।

हैंडओवर को लेकर हुआ था विवाद

इस शवदाह गृह को जीडीए ने करीब 5 महीने पहले ही बनाकर तैयार कर दिया था, लेकिन इसके हैंडओवर को लेकर निगम के साथ काफी विवाद हुआ। पहले निगम इसके लिए तैयार नहीं था। बाद में बोर्ड में प्रस्ताव लाकर इसे हैंडओवर किया गया। इस प्रॉजेक्ट को 50 लाख रुपये में तैयार किया गया है।

पर्यावरण के लिए है बेहतर

अधिकारी बताते हैं कि पारंपरिक पद्धति से शवदाह में करीब 450 किलो लकड़ी लगती है और वातावरण में 225 किलो कार्बन डाईऑक्साइड फैलता है। इसके अलावा करीब 50 किलो राख निकलती है, जिसे बाद में पानी में फेंक दिया जाता है। इससे भी प्रदूषण फैलता है। विद्युत शवदाह गृह में दाह संस्कार कराया जाए तो केवल 40 किलो कार्बन डाईऑक्साइड निकलती है, राख भी नाम मात्र की होती है। एनजीटी ने भी माना है कि पारंपरिक तरीके से शवदाह करना पर्यावरण के लिए ठीक नहीं है, क्योंकि लकड़ी की व्यवस्था के लिए होने वाली पेड़ों की कटाई से भी पर्यावरण पर असर पड़ता है।

रोज 12 से 15 शवों का होता है अंतिम संस्कार

हिंडन मोक्ष स्थल पर हर रोज 12 से 15 शव जलाए जाते हैं। इस दौरान अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी का ही इस्तेमाल किया जाता है। इलेक्ट्रिक शवदाह गृह शुरू किया जाता है, तो पर्यावरण के लिए बेहतर कदम साबित होगा।

इलेक्ट्रिक शवदाह गृह को निगम को हैंडओवर कर दिया गया है। अब से संचालित करने की जिम्मेदारी निगम की है। -संतोष कुमार राय, सचिव, जीडीए

इलेक्ट्रिक शवदाह गृह में ट्रेंड स्टाफ नहीं होने से अभी उसे चालू नहीं किया गया है। स्टाफ के लिए नगर आयुक्त को पत्र लिखा गया है। जैसे ही ट्रेंड स्टाफ मिल जाएगा, हम इसे शुरू करवा देंगे। -गजेंद्र शर्मा, जूनियर इंजीनियर, नगर निगम

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