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GarhKundar Fort: बुंदेलखंड का रहस्यमयी दुर्ग... धीरे-धीरे हो रहा खत्म, चंदेलों का रहा सैन्य अड्डा

12वीं शताब्दी में पृथ्वीराज चौहान के प्रमुख सामंत खेत सिंह खंगार ने परमार वंश के गढ़पति शिवा को हराकर इस दुर्ग पर कब्जा करने के बाद खंगार वंश की नींव डाली थी। लगभग नौ शताब्दी पूर्व निर्मित गढ़कुंडार दुर्ग एक हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में वर्गाकार जमीन पर बना है।

Edited byविवेक मिश्रा | Lipi 2 Sep 2021, 6:31 pm
राकेश कुमार अग्रवाल, महोबा
नवभारतटाइम्स.कॉम fort of garhkundar of bundelkhand reached the verge of extinction
GarhKundar Fort: बुंदेलखंड का रहस्यमयी दुर्ग... धीरे-धीरे हो रहा खत्म, चंदेलों का रहा सैन्य अड्डा

बुंदेलखंड का गढ़कुंडार का दुर्ग अपनी बनावट और स्थापत्य कला में सबसे अनूठा है। यह एक ऐसा किला है, जो 12 किमी दूर से तो आपको नजर आता है, लेकिन किले से जब आप महज 100 मीटर दूर रह जाते हैं तो किला गायब हो जाता है। किले का अठखंडा महल न केवल वास्तुकला के मामले में अनूठा है, बल्कि वर्षों पूर्व की बहुमंजिला भवन की निर्माण शैली को भी उजागर करता है।

गढ़कुंडार और खंगार वंश
12वीं शताब्दी में पृथ्वीराज चौहान के प्रमुख सामंत खेत सिंह खंगार ने परमार वंश के गढ़पति शिवा को हराकर इस दुर्ग पर कब्जा करने के बाद खंगार वंश की नींव डाली थी। लगभग नौ शताब्दी पूर्व निर्मित गढ़कुंडार दुर्ग एक हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में वर्गाकार जमीन पर बना है। ये किला चंदेल काल में चंदेलों का सूबाई मुख्यालय और सैन्य अड्डा था। यशो वर्मा चंदेल ( 925-40 ई. ) ने दक्षिण पश्चिमी बुंदेलखंड को अपने अधिकार में लेकर सुरक्षा की खातिर किले का निर्माण कराया था।

मृगमरीचिका के समान है गढ़कुंडार
गढ़कुंडार जिस पहाड़ी पर निर्मित है, वह दूर तक फैली सैकड़ों छोटी पहाड़ियों से घिरा है। इस किले की विशेषता यह है कि यह काफी दूर होने के बावजूद भी स्पष्ट नजर आता है, लेकिन जैसे ही आप आगे बढ़ेंगे यह आंखों से ओझल हो जाएगा। जिस स्थान पर किला नजर आ रहा था। वहां पर कोई दूसरी पहाड़ी नजर आने लगेगी और इस छोटी सी पहाड़ी के आंचल से झांकती एक सैनिक गढ़ी नजर आएगी। गढ़कुंडार की इसी मृगमरीचिका ने दुश्मनों को सदियों तक इसके पास फटकने नहीं दिया। गढ़कुंडार अपनी सामरिक स्थिति और विशाल सैन्य शक्ति के कारण सदियों तक मुस्लिम आक्रमणकारियों से सुरक्षित रहा।

अनूठा स्थापत्य
लाल भूरे पत्थरों से निर्मित यह दुर्ग सम्मोहिनी प्रभाव जगाता है। जैसे ही किले के नजदीक पहुंचते हैं, एक गढ़ीनुमा प्रवेश द्वार आता है। इसे स्थानीय भाषा में ड्योढ़ी कहा जाता है। नीचे दालान और इसके ऊपर छज्जानुमा निर्माण एवं सतर्क सैनिकों द्वारा हर चीज पर नजर रखने के लिए बालकनी बनी है। आगे बढने पर किले का मुख्य द्वार नजर आता है। प्रवेश द्वार के सामने एक चौड़ा चबूतरा है। जहां पर कुछ वर्षों पूर्व अष्टधातु की तोप रखी रहती थी। पूरा किला किसी भूलभुलैया की तरह समझ में आता है। राजमहल के बाहर घुड़साल हैं, जहां राजा के घोड़े बांधे जाते थे। इसमें 11 दरवाजे हैं। घुड़साल के सामने भव्य राजमहल है। आठ खंड के इस राजमहल के तीन खंड जमीन के अंदर तथा चार खंड ऊपर हैं।

काबिल-ए-तारीफ शौचालय व्यवस्था
गढ़कुंडार दुर्ग में सैनिकों के लिए शौचालयों की काबिल-ए-तारीफ व्यवस्था की गई थी। पूरे दुर्ग में शौचालयों के एक दो नहीं बल्कि बीस कैंपस हैं। एक कैंपस में एक दर्जन लोगों के लिए शौचालयों का निर्माण किया गया था। सन 1182 से सन 1257 तक गढ़कुंडार में खंगार राज्य रहा। सन 1257-1539 तक यहां बुंदेलों का शासन रहा। सन 1531 में राजा रुद्रप्रताप देव ने गढ़कुंडार से ओरछा को अपनी राजधानी बना लिया। सन 1605 के बाद ओरछा के राजा वीर सिंह देव ने गढ़कुंडार की सुध ली।

गढ़कुंडार की रूपयौवना केसर
क्षत्रिय खंगार राजवंश के अंतिम राजा मान सिंह की एक सुंदर कन्या थी। जिसका नाम केसर था। केसर के सौन्दर्य की ख्याति दिल्ली तक पहुंच गई थी। इसकी जानकारी जब दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद तुगलक को हुई तो उसने केसर से शादी का प्रस्ताव भेजा। प्रस्ताव को ठुकराए जाने के बाद मोहम्मद तुगलक बौखला गया और उसने सन 1347 में गढ़कुंडार पर आक्रमण कर किले को अपने कब्जे में ले लिया। अपनी अस्मिता को बचाने के लिए केसर ने अन्य सखियों के साथ किले के अंदर बने कुएं में आग लगाकर उसमें कूदकर जान दे दी थी। केसर की यह जौहर गाथा आज भी यहां के बुंदेली लोकगीतों में गाई जाती है।

रहस्यमयी दुर्ग
गढ़कुंडार दुर्ग को लेकर तमाम किवदंतियां प्रचलित हैं। एक किवदंती के मुताबिक, यह एक रहस्यमयी किला है। जहां एक बार पूरी बारात ही गायब हो गई थी। एक किवदंती यह भी है कि इस किले में इतना बड़ा खजाना है कि इस खजाने से पूरे भारत की गरीबी दूर हो सकती है।

एक ऐसा वृंदावन... जहां भगवान श्रीकृष्ण के हैं 108 मंदिर
नष्ट हो रही है अनमोल विरासत
महल में राजा-रानी का कक्ष, राजकुमारों के कक्ष, दीवाने आम, बंदीगृह और आंगन में हनुमान जी का मंदिर है। जिसे धनलोलुपों ने नष्ट कर दिया है। आंगन के उत्तर की ओर राजा का निवास है और दक्षिणी भाग में रनिवास है। किला धीरे-धीरे ढह रहा है। किले का ऊपरी हिस्सा भी जर्जर हो रहा है। उत्तरी दिशा में स्थित बावड़ी तक जाने के लिए एक सुरंग थी, जो अब ढह गई है। सरोवर भी नष्ट होने की कगार पर है। यह किला झांसी-मिर्जापुर राजमार्ग पर झांसी से 60 किमी दूरी पर है।
लेखक के बारे में
विवेक मिश्रा
जन्मस्थली बाराबंकी है और कर्मस्थली तीन राज्य के कई शहर रहे हैं। 2013 में प्रिंट मीडिया से करियर की शुरुआत की। मप्र जनसंदेश, पत्रिका, हिंदुस्तान, अमर उजाला, दैनिक जागरण होते हुए नवभारत टाइम्स के साथ डिजिटल मीडिया में कदम रखा।... और पढ़ें

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