वाराणसी : ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) के विवादित स्थल के सर्वे का मामला नया नहीं है। शृंगार गौरी में नियमित दर्शन और आदि विश्वेश्वर परिवार के विग्रहों को यथास्थिति रखे जाने संबंधी याचिका पर अदालत आदेश से हुए सर्वे से पहले भी कमिशन की कार्यवाही में हिंदू मंदिर के भग्नावशेष मिलने का सच सामने आ चुका है। इतना ही नहीं विवादित स्थल की 15 अगस्त 1947 को धार्मिक स्थिति क्या थी, इसके निर्धारण के लिए पुरातात्विक सर्वेक्षण का भी अदालत ने आदेश दिया था, लेकिन मामला हाई कोर्ट में लंबित है।
ज्ञानवापी परिसर में 26 साल पहले यानी 1996 में कमिशन की कार्यवाही सिविल जज के आदेश पर हुई थी। अदालत में दायर वाद एसिएंट आइडल स्वयंभू लार्ड विश्वेश्वर व अन्य में अधिवक्ता राजेश्वर प्रसाद सिंह को एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त किया गया था। कमिशन की कार्यवाही की रिपोर्ट अदालत में पेश हुई थी। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि विवादित स्थल के चारों तरफ प्राचीन काल की निर्मित पुस्ती मिली, जो प्राचीन मंदिर का अवशेष प्रतीत हो रहा है। पश्चिम की ओर मंदिर के भग्नावशेष का ढेर हैं, जो बड़े चबूतरे के रूप में स्थित है। रिपोर्ट में यह भी साफ-साफ कहा गया है कि भग्नावशेष के ऊपर ही मस्जिदनुमा ढांचा निर्मित है। रिपोर्ट में पूरब परिक्रमा पथ से हटकर हनुमान जी की प्रतिमा व मंदिर, गंगा देवी व गंगेश्वर मंदिर के मौजूद रहने का भी जिक्र है।
रेडार तकनीक से सर्वेक्षण का हुआ था आदेश
एडवोकेट कमिश्नर राजेश्वर प्रसाद सिंह की सर्वे रिपोर्ट के आधार पर ही वर्ष 2019 में सिविल जज (सीनियर डिवीजन, फास्ट ट्रैक) की अदालत ने ज्ञानवापी परिसर का भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण विभाग को रेडार तकनीक से सर्वे का आदेश दिया था। पुरातात्विक सर्वे का मुख्य उद्देश्य विवादित स्थल पर धार्मिक ढांचा किसी अन्य धार्मिक निर्माण पर अध्यारोपण, परिवर्तन, संवर्धन अथवा अतिछाजन होने और कालखंड का पता लगाने का रहा।
इस सर्वेक्षण में अल्पसंख्यक समुदाय समेत पांच विख्यात पुरातत्वेत्ताओं को शामिल करने और पुरातत्व विज्ञान के एक विशेषज्ञ व अत्यंत अनुभवी व्यक्ति को कमिटी के पर्यवेक्षक की जिम्मेदारी दिए जाने आदेश दिया था। हालांकि अदालत के इस आदेश पर हाईकोर्ट की ओर से रोक लगाई गई, जो वर्तमान में भी प्रभावी है।
ज्ञानवापी परिसर में 26 साल पहले यानी 1996 में कमिशन की कार्यवाही सिविल जज के आदेश पर हुई थी। अदालत में दायर वाद एसिएंट आइडल स्वयंभू लार्ड विश्वेश्वर व अन्य में अधिवक्ता राजेश्वर प्रसाद सिंह को एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त किया गया था। कमिशन की कार्यवाही की रिपोर्ट अदालत में पेश हुई थी। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि विवादित स्थल के चारों तरफ प्राचीन काल की निर्मित पुस्ती मिली, जो प्राचीन मंदिर का अवशेष प्रतीत हो रहा है। पश्चिम की ओर मंदिर के भग्नावशेष का ढेर हैं, जो बड़े चबूतरे के रूप में स्थित है। रिपोर्ट में यह भी साफ-साफ कहा गया है कि भग्नावशेष के ऊपर ही मस्जिदनुमा ढांचा निर्मित है। रिपोर्ट में पूरब परिक्रमा पथ से हटकर हनुमान जी की प्रतिमा व मंदिर, गंगा देवी व गंगेश्वर मंदिर के मौजूद रहने का भी जिक्र है।
रेडार तकनीक से सर्वेक्षण का हुआ था आदेश
एडवोकेट कमिश्नर राजेश्वर प्रसाद सिंह की सर्वे रिपोर्ट के आधार पर ही वर्ष 2019 में सिविल जज (सीनियर डिवीजन, फास्ट ट्रैक) की अदालत ने ज्ञानवापी परिसर का भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण विभाग को रेडार तकनीक से सर्वे का आदेश दिया था। पुरातात्विक सर्वे का मुख्य उद्देश्य विवादित स्थल पर धार्मिक ढांचा किसी अन्य धार्मिक निर्माण पर अध्यारोपण, परिवर्तन, संवर्धन अथवा अतिछाजन होने और कालखंड का पता लगाने का रहा।
इस सर्वेक्षण में अल्पसंख्यक समुदाय समेत पांच विख्यात पुरातत्वेत्ताओं को शामिल करने और पुरातत्व विज्ञान के एक विशेषज्ञ व अत्यंत अनुभवी व्यक्ति को कमिटी के पर्यवेक्षक की जिम्मेदारी दिए जाने आदेश दिया था। हालांकि अदालत के इस आदेश पर हाईकोर्ट की ओर से रोक लगाई गई, जो वर्तमान में भी प्रभावी है।