वाराणसी
वाराणसी के प्रतिष्ठित महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में एम फिल की उपाधि सवालों के घेरे में है। यह हालत इसलिए है क्योंकि संस्थान अपने यहां से संचालित होने वाले इस कोर्स को मानने के लिए तैयार ही नहीं है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के मानकों के तहत यह उपाधि है। लेकिन कुलसचिव के दस्तखत से इनकार करने के बाद एमफिल की उपाधि ही कठघरे में है।
पिछले सात वर्षों के दौरान काशी विद्यापीठ एक हजार से ज्यादा छात्रों को एमफिल डिग्री दे चुका है। ऐसे में अब यह भी सवाल उठ रहे हैं कि डिग्री की मान्यता न होने के बावजूद आखिर किन हालात में स्टूडेंट्स को को एमफिल की डिग्री बांटी जा रही है।
यूपी उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग अनुदान प्राप्त डिग्री कॉलेजों में असिस्टेंट प्रफेसर्स की नियुक्ति कर रहा है। इसी सिलसिले में सिलेक्ट हुए अभ्यर्थियों का 15 जून को इंटरव्यू है। दरअसल आयोग ने अभ्यर्थियों से इस संबंध में एक सर्टिफिकेट भी मांगा है कि उनकी पीएचडी/एमफिल की डिग्री यूजीसी रेगुलेशन-2009 के तहत मान्य है। उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के फॉर्मेट पर संबंधित यूनिवर्सिटी के कुलसचिवों को दस्तखत करते हुए प्रमाणित करना है।
विद्यापीठ के छात्र कह रहे हैं कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) सहित दूसरी संस्थाओं द्वारा पीएचडी की ही तरह एमफिल की डिग्री को भी प्रमाणित किया जा रहा है। वहीं, विद्यापीठ के रजिस्ट्रार निर्धारित फार्मेट पर दस्तखत करने से इनकार कर रहे हैं। दूसरी ओर परीक्षा विभाग के मुताबिक यूजीसी रेगुलेशन-2009 के तहत पीएचडी के लिए अध्यादेश में बदलाव हो चुका है, जबकि एमफिल के लिए ऐसा कोई संशोधन नहीं हुआ है। इसी वजह से जर्नलिज्म, इकॉनमी सहित कई विषयों में एमफिल कोर्स बंद किया जा चुका है। वहीं, हिंदी और समाजशास्त्र में अब भी एमफिल कोर्स चल रहा है।
यह है गाइडलाइन
यूजीसी की गाइड लाइन के मुताबिक एमफिल में ऐडमिशन एंट्रेंस एग्जाम के जरिए होना चाहिए। वहीं काशी विद्यापीठ में एमफिल में एंट्रेंस परीक्षा दो साल पहले शुरू हुई है। यूजीसी के मानक के अनुसार एक प्रफेसर के निर्देशन में तीन, असोसिएट प्रफेसर के निर्देशन में दो और असिस्टेंट प्रफेसर के निर्देशन में एक छात्र का एमफिल में पंजीकरण हो सकता है। लेकिन विद्यापीठ के एमफिल डिपार्टमेंट में दो शिक्षक होने के बावजूद 60-60 छात्रों को एमफिल की डिग्री दे दी गई।
वाराणसी के प्रतिष्ठित महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में एम फिल की उपाधि सवालों के घेरे में है। यह हालत इसलिए है क्योंकि संस्थान अपने यहां से संचालित होने वाले इस कोर्स को मानने के लिए तैयार ही नहीं है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के मानकों के तहत यह उपाधि है। लेकिन कुलसचिव के दस्तखत से इनकार करने के बाद एमफिल की उपाधि ही कठघरे में है।
पिछले सात वर्षों के दौरान काशी विद्यापीठ एक हजार से ज्यादा छात्रों को एमफिल डिग्री दे चुका है। ऐसे में अब यह भी सवाल उठ रहे हैं कि डिग्री की मान्यता न होने के बावजूद आखिर किन हालात में स्टूडेंट्स को को एमफिल की डिग्री बांटी जा रही है।
यूपी उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग अनुदान प्राप्त डिग्री कॉलेजों में असिस्टेंट प्रफेसर्स की नियुक्ति कर रहा है। इसी सिलसिले में सिलेक्ट हुए अभ्यर्थियों का 15 जून को इंटरव्यू है। दरअसल आयोग ने अभ्यर्थियों से इस संबंध में एक सर्टिफिकेट भी मांगा है कि उनकी पीएचडी/एमफिल की डिग्री यूजीसी रेगुलेशन-2009 के तहत मान्य है। उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के फॉर्मेट पर संबंधित यूनिवर्सिटी के कुलसचिवों को दस्तखत करते हुए प्रमाणित करना है।
विद्यापीठ के छात्र कह रहे हैं कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) सहित दूसरी संस्थाओं द्वारा पीएचडी की ही तरह एमफिल की डिग्री को भी प्रमाणित किया जा रहा है। वहीं, विद्यापीठ के रजिस्ट्रार निर्धारित फार्मेट पर दस्तखत करने से इनकार कर रहे हैं। दूसरी ओर परीक्षा विभाग के मुताबिक यूजीसी रेगुलेशन-2009 के तहत पीएचडी के लिए अध्यादेश में बदलाव हो चुका है, जबकि एमफिल के लिए ऐसा कोई संशोधन नहीं हुआ है। इसी वजह से जर्नलिज्म, इकॉनमी सहित कई विषयों में एमफिल कोर्स बंद किया जा चुका है। वहीं, हिंदी और समाजशास्त्र में अब भी एमफिल कोर्स चल रहा है।
यह है गाइडलाइन
यूजीसी की गाइड लाइन के मुताबिक एमफिल में ऐडमिशन एंट्रेंस एग्जाम के जरिए होना चाहिए। वहीं काशी विद्यापीठ में एमफिल में एंट्रेंस परीक्षा दो साल पहले शुरू हुई है। यूजीसी के मानक के अनुसार एक प्रफेसर के निर्देशन में तीन, असोसिएट प्रफेसर के निर्देशन में दो और असिस्टेंट प्रफेसर के निर्देशन में एक छात्र का एमफिल में पंजीकरण हो सकता है। लेकिन विद्यापीठ के एमफिल डिपार्टमेंट में दो शिक्षक होने के बावजूद 60-60 छात्रों को एमफिल की डिग्री दे दी गई।