कोलकाता: 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा... नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जंग-ए-आजादी के लिए दिया गया वो नारा जो अजर-अमर हो गया। इस नारे ने भारत के हर व्यक्ति में देशभक्ति की ऐसी भावना जगाई कि अंग्रेज देश छोड़कर जाने को मजबूर हो गए। वहीं 77 साल पहले दुनिया छोड़ गए नेताजी की मौत भी रहस्य बन गई। जिसका आज तक सटीक पता नहीं चल सका। हालांकि नेताजी को लेकर कई ऐसी कहानियां हैं जिसे हर कोई जानना चाहता है। उन्हीं में एक है उनका अंग्रेजों की निगरानी के बावजूद बंगाल से रहस्यमय तरीके से भाग निकलना। नेताजी तब अपनी पसंदीदा कार जर्मन वांडरर सीडान से ऐसे निकले कि अंग्रेज उन्हें खोज नहीं सके। आइए जानते हैं नेताजी का वो पूरा किस्सा।
घर में नजरबंद थे नेताजी
पूरी दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध का मंजर देख रही थी। 1940 में अंग्रेजी हुकूमत ने हिन्दुस्तान में अपने सबसे बड़े दुश्मन सुभाष चंद्र बोस को कलकत्ता की जेल में कैद करके रखा था। अंग्रेजों ने नेताजी को 2 जुलाई, 1940 को देशद्रोह के आरोप में अरेस्ट किया था। ऐसे में नेताजी ने 29 नवंबर, 1940 को जेल में गिरफ्तारी के विरोध में भूख हड़ताल शुरू कर दी। ऐसे में नेताजी की तबीयत बिगड़ने लगी।
5 दिसंबर को जेल से भिजवाया घर, बाहर बिठाया पहरा
अंग्रेजी सरकार ने पांच दिसंबर 1940 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस को उनके घर भिजवा दिया। ताकि उनकी सेहत सुधर सके। ऐसे मे अगर सुभाष चंद्र बोस की मौत भी हो जाती तो अंग्रेजी सरकार इस इल्जाम से बच जाती। खैर, घर आकर नेताजी की सेहत में सुधार आया। इस दौरान उन्होंने पाया कि अंग्रेजी सरकार ने उनके घर के आगे जासूसों की फौज लगाई हुई है। नेताजी के घर 38/2 एल्गिन रोड के बाहर सादे कपड़ों में पुलिस का पहरा था। वहीं कुछ जासूस भी निगरानी में लगे थे। इसमें से एक जासूस ने अंग्रेजी सरकार को सूचना दी थी कि नेताजी ने जेल से घर लौटने पर दलिया और सूप पिया था।
कैसे बनी बाहर निकलने रणनीति
5 दिसंबर नेताजी ने अपने भतीजे शिशिर, जो कि उस समय 20 साल के थे। उनको अपने पास बुलाया। सुभाष चंद्र बोस की तब दाढ़ी बढ़ी हुई थी और वे अधलेटे से थे। नेताजी के पौत्र और शिशिर बोस के बेटे सौगत बोस इस घटना का जिक्र कर बताते हैं कि सुभाष चंद्र बोस ने उनके पिता का हाथ अपने हाथ में लेते हुए उनसे पूछा था ‘आमार एकटा काज कौरते पारबे?’ इसके बाद यहां से निकलने की योजना बनी। तय हुआ कि शिशिर अपने चाचा को देर रात कार में बैठाकर कलकत्ता (Kolkata) से दूर एक रेलवे स्टेशन (Railway Station) तक ले जाएंगे।
बाहर जाने के लिए किस कार को चुना
सुभाष चंद्र बोस और शिशिर ने तब बाहर निकलने के लिए जर्मन वांडरर कार को चुना। हालांकि उनके पास दो कार थीं। वो अपनी जर्मन वांडरर कार के अलावा अमेरिकी स्टूडबेकर प्रेसिडेंट कार भी इस्तेमाल कर सकते थे। लेकिन उसे आसानी से पहचाना जा सकता था। ऐसे में यात्रा के लिए जर्मन वांडरर कार पर मुहर लगाई गई।
नेताजी के भतीजे ने किताब द ग्रेट एस्केप में क्या लिखा
सुभाष बोस के भतीजे शिशिर कुमार बोस ने इस पर पूरी किताब लिखी है। अपनी किताब द ग्रेट एस्केप में वो लिखते हैं, ‘हमने मध्य कलकत्ता के वैचल मौला डिपार्टमेंट स्टोर में जाकर नेताजी के लिए कुछ कपड़े खरीदे थे। इसके बाद वहां मैंने सुभाष के लिए विज़िटिंग कार्ड छपवाने का ऑर्डर दिया। कार्ड पर लिखा था, मोहम्मद ज़ियाउद्दीन, बीए, एलएलबी, ट्रैवलिंग इंस्पेक्टर, द एम्पायर ऑफ़ इंडिया अश्योरेंस कंपनी लिमिटेड , स्थायी पता, सिविल लाइंस, जबलपुर।’
कैसे निकले बाहर कलकत्ता की रात अपने चरम पर थी। तब नेताजी अपने भतीजे के साथ लोअर सरकुलर रोड, सियालदाह और हैरिसन रोड होते हुए हावड़ा पुल पार कर गए। इसके बाद वो आसनसोल के बाहरी इलाके में पहुंच गए। वहां से शिशिर ने धनबाद में अपने भाई अशोक के घर से कुछ दूरी पर नेताजी को कार से उतारा। तब वो झारखंड के गोमोह रेलवे स्टेशन पर पहुंचे थे। इसके बाद वहां से जर्मनी के लिए रवाना हो गए थे।
घर में नजरबंद थे नेताजी
पूरी दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध का मंजर देख रही थी। 1940 में अंग्रेजी हुकूमत ने हिन्दुस्तान में अपने सबसे बड़े दुश्मन सुभाष चंद्र बोस को कलकत्ता की जेल में कैद करके रखा था। अंग्रेजों ने नेताजी को 2 जुलाई, 1940 को देशद्रोह के आरोप में अरेस्ट किया था। ऐसे में नेताजी ने 29 नवंबर, 1940 को जेल में गिरफ्तारी के विरोध में भूख हड़ताल शुरू कर दी। ऐसे में नेताजी की तबीयत बिगड़ने लगी।
5 दिसंबर को जेल से भिजवाया घर, बाहर बिठाया पहरा
अंग्रेजी सरकार ने पांच दिसंबर 1940 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस को उनके घर भिजवा दिया। ताकि उनकी सेहत सुधर सके। ऐसे मे अगर सुभाष चंद्र बोस की मौत भी हो जाती तो अंग्रेजी सरकार इस इल्जाम से बच जाती। खैर, घर आकर नेताजी की सेहत में सुधार आया। इस दौरान उन्होंने पाया कि अंग्रेजी सरकार ने उनके घर के आगे जासूसों की फौज लगाई हुई है। नेताजी के घर 38/2 एल्गिन रोड के बाहर सादे कपड़ों में पुलिस का पहरा था। वहीं कुछ जासूस भी निगरानी में लगे थे। इसमें से एक जासूस ने अंग्रेजी सरकार को सूचना दी थी कि नेताजी ने जेल से घर लौटने पर दलिया और सूप पिया था।
कैसे बनी बाहर निकलने रणनीति
5 दिसंबर नेताजी ने अपने भतीजे शिशिर, जो कि उस समय 20 साल के थे। उनको अपने पास बुलाया। सुभाष चंद्र बोस की तब दाढ़ी बढ़ी हुई थी और वे अधलेटे से थे। नेताजी के पौत्र और शिशिर बोस के बेटे सौगत बोस इस घटना का जिक्र कर बताते हैं कि सुभाष चंद्र बोस ने उनके पिता का हाथ अपने हाथ में लेते हुए उनसे पूछा था ‘आमार एकटा काज कौरते पारबे?’ इसके बाद यहां से निकलने की योजना बनी। तय हुआ कि शिशिर अपने चाचा को देर रात कार में बैठाकर कलकत्ता (Kolkata) से दूर एक रेलवे स्टेशन (Railway Station) तक ले जाएंगे।
बाहर जाने के लिए किस कार को चुना
सुभाष चंद्र बोस और शिशिर ने तब बाहर निकलने के लिए जर्मन वांडरर कार को चुना। हालांकि उनके पास दो कार थीं। वो अपनी जर्मन वांडरर कार के अलावा अमेरिकी स्टूडबेकर प्रेसिडेंट कार भी इस्तेमाल कर सकते थे। लेकिन उसे आसानी से पहचाना जा सकता था। ऐसे में यात्रा के लिए जर्मन वांडरर कार पर मुहर लगाई गई।
नेताजी के भतीजे ने किताब द ग्रेट एस्केप में क्या लिखा
सुभाष बोस के भतीजे शिशिर कुमार बोस ने इस पर पूरी किताब लिखी है। अपनी किताब द ग्रेट एस्केप में वो लिखते हैं, ‘हमने मध्य कलकत्ता के वैचल मौला डिपार्टमेंट स्टोर में जाकर नेताजी के लिए कुछ कपड़े खरीदे थे। इसके बाद वहां मैंने सुभाष के लिए विज़िटिंग कार्ड छपवाने का ऑर्डर दिया। कार्ड पर लिखा था, मोहम्मद ज़ियाउद्दीन, बीए, एलएलबी, ट्रैवलिंग इंस्पेक्टर, द एम्पायर ऑफ़ इंडिया अश्योरेंस कंपनी लिमिटेड , स्थायी पता, सिविल लाइंस, जबलपुर।’
कैसे निकले बाहर कलकत्ता की रात अपने चरम पर थी। तब नेताजी अपने भतीजे के साथ लोअर सरकुलर रोड, सियालदाह और हैरिसन रोड होते हुए हावड़ा पुल पार कर गए। इसके बाद वो आसनसोल के बाहरी इलाके में पहुंच गए। वहां से शिशिर ने धनबाद में अपने भाई अशोक के घर से कुछ दूरी पर नेताजी को कार से उतारा। तब वो झारखंड के गोमोह रेलवे स्टेशन पर पहुंचे थे। इसके बाद वहां से जर्मनी के लिए रवाना हो गए थे।