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| Edited by NBT Viral Desk | Navbharat Times 14 Feb 2023, 7:12 pm
हफ्ताभर पहले 6 फरवरी को 7.8 डिग्री के तीव्रता वाले भूकंप से तुर्किये और सीरिया दहल उठा। दोनों ही देशों में भारी तबाही हुई। तुर्किये में सैकड़ों मकान ताश के पत्तों के मानिंद पलभर में ढह गए। चारों और चीख-पुकार। हर तरफ से त्राहिमाम का शोर। ऐसी स्थिति में भारत दौड़ पड़ा, पीड़ितों का हाथ थामने।बचावकर्मियों, डॉक्टरों की टीम के साथ भारी मात्रा में दवाइयां और जरूरी उपकरण के साथ जहाज उड़ने लगे। भारत चाहता तो संवेदना की दो-चार बातें करके अपनी दुनिया में मशगूल हो जाता। भूल जाता कि उस तुर्किये पर इतनी बड़ी विपदा पड़ी है जो हमें हर मौके पर चोट पहुंचाता रहा है। फिर इमेज बिल्डिंग के लिए देर-सबेर थोड़ी बहुत राहत सामग्री भेजने की औपचारिकता भी पूरी कर देता। लेकिन भारत ने ठीक उलट किया। उसने तुर्किये की राह नहीं पकड़ी, वेदों से मिला 'वसुधैव कुटुंबकम' का मंत्र सार्थक करने निकल पड़ा। इसे आप पीएम मोदी के 'आपदा में अवसर' के फॉर्म्युले के लेंस से भी देख सकते हैं। भारत ने तुर्किये की आपदा को रिश्ते सुधारने के अवसर के रूप में देखा है।

हफ्ताभर पहले 6 फरवरी को 7.8 डिग्री के तीव्रता वाले भूकंप से तुर्किये और सीरिया दहल उठा। दोनों ही देशों में भारी तबाही हुई। तुर्किये में सैकड़ों मकान ताश के पत्तों के मानिंद पलभर में ढह गए। चारों और चीख-पुकार। हर तरफ से त्राहिमाम का शोर। ऐसी स्थिति में भारत दौड़ पड़ा, पीड़ितों का हाथ थामने।बचावकर्मियों, डॉक्टरों की टीम के साथ भारी मात्रा में दवाइयां और जरूरी उपकरण के साथ जहाज उड़ने लगे। भारत चाहता तो संवेदना की दो-चार बातें करके अपनी दुनिया में मशगूल हो जाता। भूल जाता कि उस तुर्किये पर इतनी बड़ी विपदा पड़ी है जो हमें हर मौके पर चोट पहुंचाता रहा है। फिर इमेज बिल्डिंग के लिए देर-सबेर थोड़ी बहुत राहत सामग्री भेजने की औपचारिकता भी पूरी कर देता। लेकिन भारत ने ठीक उलट किया। उसने तुर्किये की राह नहीं पकड़ी, वेदों से मिला 'वसुधैव कुटुंबकम' का मंत्र सार्थक करने निकल पड़ा। इसे आप पीएम मोदी के 'आपदा में अवसर' के फॉर्म्युले के लेंस से भी देख सकते हैं। भारत ने तुर्किये की आपदा को रिश्ते सुधारने के अवसर के रूप में देखा है।


हफ्ताभर पहले 6 फरवरी को 7.8 डिग्री के तीव्रता वाले भूकंप से तुर्किये और सीरिया दहल उठा। दोनों ही देशों में भारी तबाही हुई। तुर्किये में सैकड़ों मकान ताश के पत्तों के मानिंद पलभर में ढह गए। चारों और चीख-पुकार। हर तरफ से त्राहिमाम का शोर। ऐसी स्थिति में भारत दौड़ पड़ा, पीड़ितों का हाथ थामने।बचावकर्मियों, डॉक्टरों की टीम के साथ भारी मात्रा में दवाइयां और जरूरी उपकरण के साथ जहाज उड़ने लगे। भारत चाहता तो संवेदना की दो-चार बातें करके अपनी दुनिया में मशगूल हो जाता। भूल जाता कि उस तुर्किये पर इतनी बड़ी विपदा पड़ी है जो हमें हर मौके पर चोट पहुंचाता रहा है। फिर इमेज बिल्डिंग के लिए देर-सबेर थोड़ी बहुत राहत सामग्री भेजने की औपचारिकता भी पूरी कर देता। लेकिन भारत ने ठीक उलट किया। उसने तुर्किये की राह नहीं पकड़ी, वेदों से मिला 'वसुधैव कुटुंबकम' का मंत्र सार्थक करने निकल पड़ा। इसे आप पीएम मोदी के 'आपदा में अवसर' के फॉर्म्युले के लेंस से भी देख सकते हैं। भारत ने तुर्किये की आपदा को रिश्ते सुधारने के अवसर के रूप में देखा है।

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