विशेष संवाददाता। जमीयत उलमा-ए-हिन्द का कहना है कि तीन तलाक मसले पर सजा का जो मसौदा-कानून है वह मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं के साथ न्याय नहीं करता, बल्कि इससे अन्याय की आशंका है, इसलिए इसे हरगिज कबूल नहीं किया जा सकता है। शरीयत की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में उत्तर प्रदेश में लाउडस्पीकर से संबंधी दिशा-निर्देशों सहित कई कौमी-मिल्ली मसाइल पर चर्चा की गई।
बहादुरशाह जफर मार्ग स्थित मदनी हॉल में आयोजित जमीयत की कल आयोजित इस बैठक में मौलाना कारी सैयद मोहम्मद उस्मान मंसूरपुरी अध्यक्ष जमीयत उलमा-ए-हिन्द की अध्यक्षता में आयोजित की गई। केंद्र के तीन तलाक मसौदा कानून पर कहा गया है कि इस कानून के तहत पीड़ित महिला का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा और उस के लिए दोबारा निकाह और नई जिंदगी शुरू करने का रास्ता बिल्कुल खत्म हो जाएगा। इसके अलावा पुरुष के जेल जाने की सजा महिला और बच्चों को भुगतनी पड़ेगी। इसके अलावा जिन लोगों के लिए यह कानून बनाया गया उनके प्रतिनिधियों, धार्मिक चिंतकों, विभिन्न शरीयत के कानूनी विशेषज्ञों और मुस्लिम संगठनों से कोई सुझाव नहीं लिया गया।
में इलाहाबाद हाई कोर्ट की ओर से लाउडस्पीकर के इस्तेमाल से संबंधित मामलों पर भी चर्चा की गई और कहा गया कि मस्जिद किसी ज़िम्मेदार स्थानीय प्रशासन से अनुमति लेने के लिए कानूनी कार्रवाई पूरी करें। अगर किसी जगह कोई परेशानी आती है तो उसके लिए जमीयत उलमा-ए-हिन्द के केन्द्रीय कार्यालय और क्षेत्रीय कार्यालयों के पदाधिकारियों से सम्पर्क करें। राज्य सरकार से अपील है कि वह इस प्रकरण में साम्प्रदायिक भेदभाव न बरते। कार्यकारिणी की बैठक में अध्यक्ष के अलावा मौलाना अमानुल्लाह कासमी, मौलाना हसीब सिद्दीकी, शकील अहमद सैयद, मुफ्ती मोहम्मद सलमान मंसूरपुरी, मौलाना रहमतुल्ला मीर कश्मीरी, मौलाना मतीनउल हक ओसामा, कारी मुहम्मद अमीन, मोहम्मद इसलाम कासमी आदि शामिल हुए।