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ये विकास के विरोधी नहीं हैं

उदारवादी राज्यों में यह विरोधाभास अक्सर दिखता है। भेदभाव और जातिवाद के रहते उदारवादी लोकतांत्रिक मूल्यों का दावा नहीं कर सकते। ऑस्ट्रेलिया में मूल निवासी करीब 60 हजार साल से वहां रह रहे हैं। दर्शन के संरक्षण से लेकर कला के विज्ञान तक बहुत-सा ज्ञान है जो ऑस्ट्रेलियाई समाज इनसे सीख सकता है।

नवभारत टाइम्स 3 Feb 2021, 4:03 pm
डंकन आइविसन ऑस्ट्रेलिया की सिडनी यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल फिलॉसफी पढ़ाते हैं। वह बता रहे हैं कि ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासी आंदोलन क्यों कर रहे हैं।
नवभारतटाइम्स.कॉम Duncan-Ivison
डंकन आइविसन


हम अपने मूल निवासियों या कहें देसी समुदायों के साथ कैसा बर्ताव करते हैं, इससे ही कई बातें साफ हो जाती हैं। उपनिवेशवाद ने कई आधुनिक देशों को आकार दिया है जैसे - ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका और कुछ हद तक भारत भी। बहुत-से आदिवासी लोग अब आधुनिक और लोकतांत्रिक समाज में रह रहे हैं और उनके मूल्यों को मानने लगे हैं। लेकिन देसी ज़िंदगी लगातार खत्म हो रही है। उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ता है।

उदारवादी राज्यों में यह विरोधाभास अक्सर दिखता है। भेदभाव और जातिवाद के रहते उदारवादी लोकतांत्रिक मूल्यों का दावा नहीं कर सकते। ऑस्ट्रेलिया में मूल निवासी करीब 60 हजार साल से वहां रह रहे हैं। दर्शन के संरक्षण से लेकर कला के विज्ञान तक बहुत-सा ज्ञान है जो ऑस्ट्रेलियाई समाज इनसे सीख सकता है। कई बार यह सोच दिखती है कि आदिवासी आर्थिक विकास या आधुनिकता के विरोधी हैं। लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता।


कई बार उनसे पूछे बिना उनके इलाके में दखल दिया जाता है, बिना मुआवजा दिए या उन पर पड़ने वाले गलत प्रभाव की चिंता किए काम किए जाते हैं। इससे दूरी बढ़ती है। ऑस्ट्रेलिया में उपनिवेशवाद का सबसे मुश्किल इतिहास रहा है। यहां मूल निवासियों के साथ संघर्ष की लंबी कहानी है। अब यहां अहम ग्रासरूट मूवमेंट चल रहा है। इसमें उनके वकील, सामुदायिक कार्यकर्ता और नेता भी शामिल हैं। जरूरी है कि अब उनकी आवाज सभी उदारवादी और लोकतांत्रिक संस्थान सुनें।

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