मॉस्को: फरवरी के आखिरी हफ्ते में शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) का असर पूरी दुनिया में देखने को मिल रहा है। वैश्विक महाशक्तियों के बीच अमेरिका या रूस (US Russia Tension) में से किसी एक ध्रुव को चुनने का दबाव भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे हालात में भारत (India on Russia Ukraine War) की भी कूटनीति काफी मुश्किल परिस्थितियों से गुजर रही है। भारत ने जैसे ही रूस से रूबल में तेल खरीदने (Indian Oil Inport from Russia) का ऐलान किया, वैसे ही अमेरिका ने चेतावनी जारी कर दी। भारत दौरे पर आए अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह ने तो साफ शब्दों में कहा कि भारत को यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि अगर चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन करता है तो रूस उसके बचाव में आएगा। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि भारतीय कूटनीति एक बार फिर 1998 जैसे दबाव से गुजर रही है। इसी साल भारत ने एक के बाद एक कई परमाणु परीक्षण कर दुनिया को चौंका दिया था, जिस कारण अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों ने प्रतिबंधों की बौछार कर दी थी। भारत-रूस संबंधों से खुश नहीं है अमेरिका
अमेरिका के वाणिज्य मंत्री जीना रायमुंडो ने बुधवार को कहा कि यह काफी निराशाजनक होगा, अगर नई दिल्ली मॉस्को से रियायती दर पर तेल और गैस की डील करती है। इतना ही नहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने खुद ही रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के रूख को कुछ हद तक अस्थिर बता चुके हैं। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ वोटिंग से हर बार वॉकआउट किया है। वहीं, सुरक्षा परिषद की बैठक में भारत दोनों देशों से तत्काल युद्ध को खत्म करने और बातचीत के जरिए विवादों को हल करने का आह्वान कर चुका है। भारतीय कूटनीति को धार देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री एस जयशंकर, विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला और अमेरिका में भारत के वर्तमान राजदूत तरनजीत सिंह संधू की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है।
1998 जैसी मुश्किल में फंस गया भारत?
अमेरिका में भारत के वर्तमान राजदूत तरनजीत सिंह संधू 1998 के दौरान एक युवा पॉलिटिकल काउंसलर थे। उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों को भारत के परमाणु परीक्षण को लेकर मजबूरियों को समझाने में बखूबी सफलता पाई थी। यही कारण था कि आने वाले दिनों में अमेरिका ने भारत के ऊपर लगाए गए अधिकतर प्रतिबंधों को खत्म कर दिया था। उसके बाद से 2008 के दौरान भारत-अमेरिका परमाणु समझौते ने दोनों देशों के रिश्तों को नए पंख दे दिए। उस बढ़ती हुई साझेदारी को लेकर ही अब अमेरिकी पक्षकार भारत से अपने पक्ष पर पूर्ण समर्थन की आस लगा रहे हैं। वहीं, भारत का कहना है कि हमारी विदेश नीति स्वतंत्र है और सभी देशों के साथ रिश्तों की अहमियत भी अलग है।
अमेरिका में भारतीय कूटनीतिक ताकतें हुई सक्रिय
भारतीय राजदूत तरनजीत सिंह संधू चौथी बार अमेरिका में पोस्टिंग पाए हुए हैं। वे रूस-यूक्रेन संकट पर भारत की स्थिति को समझाने के लिए दर्जनों अमेरिकी सांसदों, विश्लेषकों और प्रशासन के अधिकारियों से मुलाकात कर रहे हैं। हालांकि, अमेरिका का रुख आज भी वैसा ही है, जैसा 1998 के दशक में था। अमेरिका खुद को वैश्विक तनाव खत्म करवाने में मास्टर मानता है। उसका मानना है कि चीन की आक्रामकता के खिलाफ वही ऐसा देश है, जो भारत की सहायता कर सकता है। इसके बावजूद भारत के राजनयिक अमेरिकी अधिकारियों, सांसदों और विश्लेषकों के साथ बैठक कर भारत के नजरिये को समझाने की कोशिश कर रहे हैं।
अमेरिका के वाणिज्य मंत्री जीना रायमुंडो ने बुधवार को कहा कि यह काफी निराशाजनक होगा, अगर नई दिल्ली मॉस्को से रियायती दर पर तेल और गैस की डील करती है। इतना ही नहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने खुद ही रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के रूख को कुछ हद तक अस्थिर बता चुके हैं। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ वोटिंग से हर बार वॉकआउट किया है। वहीं, सुरक्षा परिषद की बैठक में भारत दोनों देशों से तत्काल युद्ध को खत्म करने और बातचीत के जरिए विवादों को हल करने का आह्वान कर चुका है। भारतीय कूटनीति को धार देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री एस जयशंकर, विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला और अमेरिका में भारत के वर्तमान राजदूत तरनजीत सिंह संधू की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है।
1998 जैसी मुश्किल में फंस गया भारत?
अमेरिका में भारत के वर्तमान राजदूत तरनजीत सिंह संधू 1998 के दौरान एक युवा पॉलिटिकल काउंसलर थे। उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों को भारत के परमाणु परीक्षण को लेकर मजबूरियों को समझाने में बखूबी सफलता पाई थी। यही कारण था कि आने वाले दिनों में अमेरिका ने भारत के ऊपर लगाए गए अधिकतर प्रतिबंधों को खत्म कर दिया था। उसके बाद से 2008 के दौरान भारत-अमेरिका परमाणु समझौते ने दोनों देशों के रिश्तों को नए पंख दे दिए। उस बढ़ती हुई साझेदारी को लेकर ही अब अमेरिकी पक्षकार भारत से अपने पक्ष पर पूर्ण समर्थन की आस लगा रहे हैं। वहीं, भारत का कहना है कि हमारी विदेश नीति स्वतंत्र है और सभी देशों के साथ रिश्तों की अहमियत भी अलग है।
अमेरिका में भारतीय कूटनीतिक ताकतें हुई सक्रिय
भारतीय राजदूत तरनजीत सिंह संधू चौथी बार अमेरिका में पोस्टिंग पाए हुए हैं। वे रूस-यूक्रेन संकट पर भारत की स्थिति को समझाने के लिए दर्जनों अमेरिकी सांसदों, विश्लेषकों और प्रशासन के अधिकारियों से मुलाकात कर रहे हैं। हालांकि, अमेरिका का रुख आज भी वैसा ही है, जैसा 1998 के दशक में था। अमेरिका खुद को वैश्विक तनाव खत्म करवाने में मास्टर मानता है। उसका मानना है कि चीन की आक्रामकता के खिलाफ वही ऐसा देश है, जो भारत की सहायता कर सकता है। इसके बावजूद भारत के राजनयिक अमेरिकी अधिकारियों, सांसदों और विश्लेषकों के साथ बैठक कर भारत के नजरिये को समझाने की कोशिश कर रहे हैं।