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The Lancet: भारत में Coronavirus की त्रासदी पर 'द लैंसेट' की रिपोर्ट- 'PM मोदी के काम अक्षम्य, सरकार ले गलतियों की जिम्मेदारी'

संपादकीय में कहा गया है कि भारत में जिन हालात से लोग गुजर रहे हैं, उन्हें समझना बेहद मुश्किल है। इसके मुताबिक एक्सपर्ट्स हर दिन सामने आते मामलों और मौत के आंकड़ों को असल से ज्यादा मानते हैं।

नवभारतटाइम्स.कॉम 9 May 2021, 3:04 pm
वॉशिंगटन
भारत में काल का रूप बनकर आई कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर ने पूरी दुनिया को सकते में डाल दिया है। वैज्ञानिकों और शोधकर्ता इस बात को समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर हालात इतने बदतर कैसे हो गए। प्रतिष्ठित जर्नल 'द लैंसेट' के संपादकीय में महामारी की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार को जिम्मेदार बताया है और आने वाले समय में इससे निपटने के लिए क्या कदम उठाने की जरूरत है, यह भी बताया है।

अस्पताल भरे, स्वास्थ्यकर्मी परेशान
संपादकीय में कहा गया है कि भारत में जिन हालात से लोग गुजर रहे हैं, उन्हें समझना बेहद मुश्किल है। इसके मुताबिक एक्सपर्ट्स हर दिन सामने आते मामलों और मौत के आंकड़ों को असल से ज्यादा मानते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, 'अस्पतालों में जगह नहीं है और स्वास्थ्यकर्मी परेशान हो गए हैं और संक्रमित हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर लोग और डॉक्टर मेडिकल ऑक्सिजन, अस्पतालों में बेड और दूसरी जरूरतों के लिए गुहार लगा रहे हैं। फिर भी जब दूसरी वेव मार्च में शुरू होने लगी तो स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने ऐलान किया कि भारत महामारी का एंडगेम है।'

'हर्ड इम्यूनिटी नहीं मिली'
रिपोर्ट के मुताबिक सरकार की तरफ से ऐसा दिखाई दिया कि भारत ने कई महीनों तक कम केस आने के बाद महामारी को हरा दिया है जबकि नए स्ट्रेन्स के कारण दूसरी वेव की लगातार चेतावनी दी जा रही थी। संपादकीय में कहा गया है, 'मॉडल ने गलत तरीके से दिखाया कि भारत हर्ड इम्यूनिटी के करीब पहुंच रहा है। इससे लोग निश्चिंत हो गए और तैयारियां अपर्याप्त रह गईं लेकिन जनवरी में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के सीरोसर्वे में पता चला कि सिर्फ 21% आबादी में SARS-CoV-2 के खिलाफ ऐंटीबॉडीज थीं।'

'धार्मिक कार्यक्रम, रैलियों की इजाजत दी गई'
इस संपादकीय में तंज कसा गया है, 'लगा कि नरेंद्र मोदी सरकार का ध्यान ट्विटर से आलोचना हटाने पर ज्यादा था और महामारी नियंत्रित करने पर कम।' सुपरस्प्रेडर इवेंट की चेतावनी के बावजूद धार्मिक त्योहारों और राजनीतिक रैलियों की इजाजत देकर लाखों लोगों को इकट्ठा किया गया। भारत के वैक्सिनेशन कैंपेन पर भी इसका असर दिखने लगा। सरकार ने बिना राज्यों के साथ चर्चा किए 18 साल की उम्र से ज्यादा के लोगों के लिए वैक्सीन का ऐलान कर दिया जिससे सप्लाई खत्म होने लगी और लोग कन्फ्यूज हो गए।


'ऑक्सिजन-बेड मांग रहे लोगों पर ऐक्शन'
रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्य अचानक मामले बढ़ने के लिए तैयार नहीं थे और यहां मेडिकल ऑक्सिजन, हॉस्पिटल स्पेस और श्मशान में जगह भी खत्म होने लगी। यहां तक कि 'कुछ राज्य सरकारों ने ऑक्सिजन या हॉस्पिटल बेड मांगने वालों पर नैशनल सिक्यॉरिटी लॉ तक लगा दी। वहीं दूसरे राज्य, जैसे केरल और ओडिशा की तैयारी थी और दूसरे राज्यों को देने के लिए उनके पास पर्याप्त मेडिकल ऑक्सिजन है।'

'वैक्सिनेशन तेज हो, ट्रांसमिशन रोकें'
संपादकीय में सलाह दी गई है कि भारत को दो तरह की रणनीति बनानी होगी। एक तो वैक्सीनेशन कैंपेन को तेजी से आगे बढ़ाना होगा। वैक्सीन की सप्लाई तेज करनी होगी और ऐसा वितरण कैंपेन हो जिससे शहरी और ग्रामीण, दोनों इलाके के नागरिकों को कवर किया जा सके। दूसरा, SARS-CoV-2 ट्रांसमिशन को रोकना होगा। सरकार को सटीक डेटा समय पर देना होगा। लोगों को बताना होगा कि क्या हो रहा है और महामारी को खत्म करने के लिए क्या करना होगा। लॉकडाउन की संभावना भी साफ करनी होगी। जीनोम सीक्वेंसिंग का विस्तार करना होगा जिससे वेरियंट को समझा जा सके।


केंद्र सरकार की जिम्मेदारी ज्यादा
स्थानीय सरकारों ने बीमारी रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं लेकिन लोगों को मास्क पहनना, सोशल डिस्टेंसिंग करना, बड़े सामाजिक कार्यक्रम न करना, क्वारंटीन होना और टेस्टिंग के लिए समझाना केंद्र सरकार का काम है। संपादकीय में लिखा है, 'संकट के बीच आलोचना और चर्चा को खत्म करने के लिए मोदी के ऐक्शन अक्षम्य है।' इंस्टिट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स ऐंड इवैल्यूएशन के आकलन के मुताबिक अगस्त तक भारत में 10 लाख मौतें हो सकती हैं। अगर ऐसा हुआ तो मोदी सरकार खुद पैदा की राष्ट्रीय आपदा के लिए जिम्मेदार होगा।

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