ढाका
म्यांमार के रखाइन प्रांत में भड़की हालिया हिंसा के बाद से रोहिंग्या मुसलमान बड़ी संख्या में बांग्लादेश की तरफ पलायन कर रहे हैं। ऐसे में बांग्लादेश में शरणार्थी संकट गहराता जा रहा है। बताया जा रहा है बांग्लादेश इस संकट से निपटने के रास्ते तलाश रहा है। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग के मुताबिक 25 अगस्त के बाद 15 दिनों में करीब 2 लाख 90 हजार रोहिंग्याओं ने म्यांमार से बांग्लादेश में पलायन किया है।
रोहिंग्याओं के देश में आने को लेकर बांग्लादेश का समाज बंटा हुआ नजर आ रहा है। इसके बावजूद वहां रोहिंग्याओं के लिए आवाज उठाने वालों की कमी नहीं दिख रही। एक तरफ बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टी और इसके सहयोगी इस्लामिक दल रोहिंग्याओं पर हो रहे अत्याचार को धर्म से जोड़कर इसका विरोध कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ कुछ धर्मनिरपेक्ष संगठन मानवता को आधार बनाते हुए रोहिंग्याओं पर हो रहे अत्याचार का विरोध कर रहे हैं। हालांकि बांग्लादेश के कुछ संगठन रोहिंग्या चरमपंथ से सावधान रहने की चेतावनी भी दे रहे हैं।
25 अगस्त को रोहिंग्या चरमपंथियों द्वारा म्यांमार के सुरक्षा ठिकानों पर किए गए हमले के बारे में बोलते हुए बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा था, 'बांग्लादेश ने ऐसी गतिविधियों का कभी समर्थन नहीं किया, लेकिन म्यांमार सरकार इससे जिस तरह से निपट रही है, उससे बांग्लादेश के लिए समस्याएं पैदा हो रही हैं।'
बताया जा रहा है कि इस सब के बीच बांग्लादेश सरकार ने रोहिंग्या संकट को सुलझाने के लिए कूटनीतिक कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। सूत्रों की मानें तो बांग्लादेश इस काम में भारत का सहयोग भी चाहता है। दरअसल भारत और बांग्लादेश, दोनों ही देशों के रिश्ते म्यांमार के साथ काफी अच्छे हैं। ऐसे में बांग्लादेश को लगता है कि भारत की मदद से म्यांमार के साथ बातचीत के जरिए रोहिंग्या समस्या को सुलझाया जा सकता है।
म्यांमार के रखाइन प्रांत में भड़की हालिया हिंसा के बाद से रोहिंग्या मुसलमान बड़ी संख्या में बांग्लादेश की तरफ पलायन कर रहे हैं। ऐसे में बांग्लादेश में शरणार्थी संकट गहराता जा रहा है। बताया जा रहा है बांग्लादेश इस संकट से निपटने के रास्ते तलाश रहा है। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग के मुताबिक 25 अगस्त के बाद 15 दिनों में करीब 2 लाख 90 हजार रोहिंग्याओं ने म्यांमार से बांग्लादेश में पलायन किया है।
रोहिंग्याओं के देश में आने को लेकर बांग्लादेश का समाज बंटा हुआ नजर आ रहा है। इसके बावजूद वहां रोहिंग्याओं के लिए आवाज उठाने वालों की कमी नहीं दिख रही। एक तरफ बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टी और इसके सहयोगी इस्लामिक दल रोहिंग्याओं पर हो रहे अत्याचार को धर्म से जोड़कर इसका विरोध कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ कुछ धर्मनिरपेक्ष संगठन मानवता को आधार बनाते हुए रोहिंग्याओं पर हो रहे अत्याचार का विरोध कर रहे हैं। हालांकि बांग्लादेश के कुछ संगठन रोहिंग्या चरमपंथ से सावधान रहने की चेतावनी भी दे रहे हैं।
25 अगस्त को रोहिंग्या चरमपंथियों द्वारा म्यांमार के सुरक्षा ठिकानों पर किए गए हमले के बारे में बोलते हुए बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा था, 'बांग्लादेश ने ऐसी गतिविधियों का कभी समर्थन नहीं किया, लेकिन म्यांमार सरकार इससे जिस तरह से निपट रही है, उससे बांग्लादेश के लिए समस्याएं पैदा हो रही हैं।'
बताया जा रहा है कि इस सब के बीच बांग्लादेश सरकार ने रोहिंग्या संकट को सुलझाने के लिए कूटनीतिक कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। सूत्रों की मानें तो बांग्लादेश इस काम में भारत का सहयोग भी चाहता है। दरअसल भारत और बांग्लादेश, दोनों ही देशों के रिश्ते म्यांमार के साथ काफी अच्छे हैं। ऐसे में बांग्लादेश को लगता है कि भारत की मदद से म्यांमार के साथ बातचीत के जरिए रोहिंग्या समस्या को सुलझाया जा सकता है।