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अब युद्ध-अपराध के मुद्दे पर उलझे सिरिसेना-विक्रमसिंघे

श्री लंका के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री एकबार फिर उलझते नजर आ रहे हैं। इस बार मामला तमिलों के खिलाफ हुए युद्ध-अपराध को लेकर यूएनएचआरसी के प्रति श्री लंका की प्रतिबद्धता है।

पीटीआई 7 Mar 2019, 4:56 pm
कोलंबो
नवभारतटाइम्स.कॉम RANIL

श्री लंका के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री एकबार फिर उलझते नजर आ रहे हैं। इस बार मामला तमिलों के खिलाफ हुए युद्ध-अपराध को लेकर यूएनएचआरसी के प्रति श्री लंका की प्रतिबद्धता है। प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को लागू करने की प्रतिबद्धता को दोहराया है। जबकि राष्ट्रपति सिरिसेना का कहना है कि वह अपनी टीम यूएनएचआरसी के सत्र में भेजेंगे।

पीएम ऑफिस और विदेश मंत्रालय की तरफ से गुरुवार को जारी बयान में कहा गाय है कि श्री लंका को-स्पॉन्सर्ड प्रस्ताव के जरिये दीर्घ अवधि के समाधान की दिशा में अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करता रहेगा। बयान में कहा गया कि सरकार संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 40वीं सत्र में यूएनएचआरसी प्रस्ताव की टाइमलाइन को बढ़ाने की मांग करेगी जबकि राष्ट्रपति ने इससे उलट अलग ही बयान दिया है। राष्ट्रपति सिरिसेना ने बुधवार को कहा कि वह इस अवधि में कटौती की मांग के लिए यूएनएचआरसी सत्र में अपनी टीम भेजेंगे। सिरिसेना ने कहा कि अतीत को खंगालने की जगह संयुक्त राष्ट्र को श्री लंका को अपने मसले खुद सुलझाने देना चाहिए।

बता दें कि यूएनएचआरसी के प्रस्तावों के तहत श्री लंका को कथित मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर 2013 में प्रतिबंधित कर दिया गया था। प्रस्ताव में एनटीटीई और सरकारी सेना द्वारा किए गए कथित मानवाधिकार उल्लंघन की अंतराष्ट्रीय एजेंसी से जांच कराने की बात कही गई है। श्री लंका ने अमेरिका के साथ मिलकर 2015 में प्रस्ताव लाया था और मौजूदा सत्र में इस संबंध में कोलंबो में हुई प्रगति की समीक्षा की जाएगी।

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