काठमांडू: ल्हासा से काठमांडू तक रेल लाइन का जो प्रोजेक्ट नेपाल और चीन के बीच शुरू होने वाला है, उस पर कई तरह के सवाल उठने लगे हैं। यह एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है जिससे मिलने वाले फायदे और इस पर आने वाली लागत सवालों के घेरे में आ गई है। अकेले नेपाल पर इस रेल लाइन की वजह से तीन अरब डॉलर से ज्यादा का बोझ पड़ने वाला है। यह रेल लाइन 500 किलोमीटर से भी ज्यादा लंबी होगी और चीन के मानकों के मुताबिक भी यह प्रोजेक्ट सस्ता नहीं बल्कि काफी महंगा होने वाला है। बढ़ती जाएगी लागत
चीन की फुदान यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर झांग जियाडोंग ने पिछले दिनों कहा था कि नेपाल और चीन के बीच क्रॉस बॉर्डर ल्हासा-शिगात्से-केरुंग-काठमांडू रेल लाइन का एक प्रस्ताव है। इस रेल लाइन पर कुल आठ अरब डॉलर की लागत आएगी और यह जानकारी खुद प्रोफेसर ने कही थी। प्रोफेसर जियोडोंग ने शुरुआती स्टडी के आधार पर यह बात कही थी। उन्होंने यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर लिखा, 'यह सिर्फ शुरुआती लागत है क्योंकि अभी बड़े स्तर पर एक सर्वे होना है। एक बार प्रोजेक्ट शुरू होगा तो यह लागत भी बढ़ जाएगी।' नेपाल के अधिकारी जो चीनी ऑफिशियल्स के साथ इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे, उन्होंने कई राउंड इस प्रोजेक्ट पर चर्चा की थी।
उनका कहना था कि अगर नेपाल, केरूंग से काठमांडू तक रेल लाइन के निर्माण पर राजी होता है तो उसे नेपाल सेक्शन में निवेश करना होगा। इस रेल लाइन की कुल लंबाई 599.41 किलोमीटर होगी जिसमें से 527.16 किलोमीटर का सेक्शन चीन में पड़ेगा जबकि 72.25 किलोमीटर नेपाल में होगा। केरुंग से काठमांडू तक का सेक्शन करीब 170.41 किलोमीटर लंबा होगा। रेलवे अधिकारियों की मानें तो नेपाल की तरफ सिर्फ दो प्रतिशत ही रेलवे लाइन होगी।
मुश्किल है रास्ता
नेपाल की मिनिस्ट्री ऑफ फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड ट्रांसपोर्टेशन के पूर्व सचिव मधूसूदन अधिकारी ने चीन के अधिकारियों के साथ कई राउंड मीटिंग्स कीं। उन्होंने बताया कि शिगात्से से लेक पाइकू जो चीन क तरफ पड़ता है, वहां पर रास्ता प्लेन और स्थिर है। मगर नेपाल की तरफ आने वाले केरुंग का रास्ता बहुत ही संकरा है और इसकी वजह से निर्माण पर आने वाली कीमत में इजाफा हो जाएगा।
इस रेल लाइन के बारे में साल 2018 में पहली रिपोर्ट तैयार की गई थी। चीन ने पहले ही अपनी तरफ पर होने वाले निर्माण के बारे में अध्ययन शुरू कर दिया है। वहीं उसने नेपाल को भी वादा किया है कि उसकी तरफ पर स्टडी भी वही करवायेगा। नेपाल ने इसके लिए मंजूरी भी दे दी है। अक्टूबर 2019 में जब शी जिनपिंग नेपाल के दौरे पर गए थे उसके बाद से प्रोजेक्ट की गाड़ी थोड़ी आगे बढ़ी।
अटका है प्रोजेक्ट
नेपाल के रेलवे विभाग की मानें तो अभी तक इस प्रोजेक्ट में कोई प्रगति नहीं हुई है। अगस्त में जब नेपाल के विदेश मंत्री नारायण खडका, चीन गए और अपने चीनी समकक्ष वांग वाई से मिले तो उन्हें चीन के खर्चे पर केरुंग-काठमांडू रेल लाइन की स्टडी का वादा मिला। जब वह काठमांडू वापस लौटकर आए तो खडका ने कहा कि केरुंग-काठमांडू रेलवे लाइन को चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (BRI) के तहत आर्थिक मदद दी जाएगी।
रेलवे अधिकारियों की मानें तो इस बात का अध्ययन करना काफी जरूरी है कि निवेश के बाद इस रेलवे लाइन से कितना फायदा होगा ताकि रकम को वसूला जा सके। वहीं प्रोफेसर झांग की मानें तो इस प्रोजेक्ट में कई बड़ी समस्याएं हैं। बड़े-बड़े पत्थर, ऊंचाई वाली जमीन पर तापमान और गर्मी की वजह से होने वाला नुकसान, इस तरह की कई बाधांए इस प्रोजेक्ट के रास्ते में आने वाली हैं।
2011 में बना रेल विभाग
यह दुनिया का सबसे मुश्किल रेल मार्ग होने वाला है। इस रेल लाइन में ट्रेन नाजुक हिमालय की रेंज से निकलेगी। विशेषज्ञों की मानें तो चीन के पास अनुभव है कि वह इस तरह की मुश्किल जगहों पर रेल लाइन बना सके। लेकिन नेपाल के पास इस तरह की तकनीकी क्षमता नहीं है। सन् 1927 में नेपाल ने पहली रेल का निर्माण किया था और यह भारत की सीमा के करीब था। साल 2011 तक यहां पर कोई रेल विभाग नहीं था। रेल विभाग तो तैयार हो गया लेकिन अभी तक इंजीनियर्स की नियुक्ति नहीं की गई है। ऐसे में इस प्रोजेक्ट का क्या होगा कोई नहीं जानता है।
चीन की फुदान यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर झांग जियाडोंग ने पिछले दिनों कहा था कि नेपाल और चीन के बीच क्रॉस बॉर्डर ल्हासा-शिगात्से-केरुंग-काठमांडू रेल लाइन का एक प्रस्ताव है। इस रेल लाइन पर कुल आठ अरब डॉलर की लागत आएगी और यह जानकारी खुद प्रोफेसर ने कही थी। प्रोफेसर जियोडोंग ने शुरुआती स्टडी के आधार पर यह बात कही थी। उन्होंने यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर लिखा, 'यह सिर्फ शुरुआती लागत है क्योंकि अभी बड़े स्तर पर एक सर्वे होना है। एक बार प्रोजेक्ट शुरू होगा तो यह लागत भी बढ़ जाएगी।' नेपाल के अधिकारी जो चीनी ऑफिशियल्स के साथ इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे, उन्होंने कई राउंड इस प्रोजेक्ट पर चर्चा की थी।
उनका कहना था कि अगर नेपाल, केरूंग से काठमांडू तक रेल लाइन के निर्माण पर राजी होता है तो उसे नेपाल सेक्शन में निवेश करना होगा। इस रेल लाइन की कुल लंबाई 599.41 किलोमीटर होगी जिसमें से 527.16 किलोमीटर का सेक्शन चीन में पड़ेगा जबकि 72.25 किलोमीटर नेपाल में होगा। केरुंग से काठमांडू तक का सेक्शन करीब 170.41 किलोमीटर लंबा होगा। रेलवे अधिकारियों की मानें तो नेपाल की तरफ सिर्फ दो प्रतिशत ही रेलवे लाइन होगी।
मुश्किल है रास्ता
नेपाल की मिनिस्ट्री ऑफ फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड ट्रांसपोर्टेशन के पूर्व सचिव मधूसूदन अधिकारी ने चीन के अधिकारियों के साथ कई राउंड मीटिंग्स कीं। उन्होंने बताया कि शिगात्से से लेक पाइकू जो चीन क तरफ पड़ता है, वहां पर रास्ता प्लेन और स्थिर है। मगर नेपाल की तरफ आने वाले केरुंग का रास्ता बहुत ही संकरा है और इसकी वजह से निर्माण पर आने वाली कीमत में इजाफा हो जाएगा।
इस रेल लाइन के बारे में साल 2018 में पहली रिपोर्ट तैयार की गई थी। चीन ने पहले ही अपनी तरफ पर होने वाले निर्माण के बारे में अध्ययन शुरू कर दिया है। वहीं उसने नेपाल को भी वादा किया है कि उसकी तरफ पर स्टडी भी वही करवायेगा। नेपाल ने इसके लिए मंजूरी भी दे दी है। अक्टूबर 2019 में जब शी जिनपिंग नेपाल के दौरे पर गए थे उसके बाद से प्रोजेक्ट की गाड़ी थोड़ी आगे बढ़ी।
अटका है प्रोजेक्ट
नेपाल के रेलवे विभाग की मानें तो अभी तक इस प्रोजेक्ट में कोई प्रगति नहीं हुई है। अगस्त में जब नेपाल के विदेश मंत्री नारायण खडका, चीन गए और अपने चीनी समकक्ष वांग वाई से मिले तो उन्हें चीन के खर्चे पर केरुंग-काठमांडू रेल लाइन की स्टडी का वादा मिला। जब वह काठमांडू वापस लौटकर आए तो खडका ने कहा कि केरुंग-काठमांडू रेलवे लाइन को चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (BRI) के तहत आर्थिक मदद दी जाएगी।
रेलवे अधिकारियों की मानें तो इस बात का अध्ययन करना काफी जरूरी है कि निवेश के बाद इस रेलवे लाइन से कितना फायदा होगा ताकि रकम को वसूला जा सके। वहीं प्रोफेसर झांग की मानें तो इस प्रोजेक्ट में कई बड़ी समस्याएं हैं। बड़े-बड़े पत्थर, ऊंचाई वाली जमीन पर तापमान और गर्मी की वजह से होने वाला नुकसान, इस तरह की कई बाधांए इस प्रोजेक्ट के रास्ते में आने वाली हैं।
2011 में बना रेल विभाग
यह दुनिया का सबसे मुश्किल रेल मार्ग होने वाला है। इस रेल लाइन में ट्रेन नाजुक हिमालय की रेंज से निकलेगी। विशेषज्ञों की मानें तो चीन के पास अनुभव है कि वह इस तरह की मुश्किल जगहों पर रेल लाइन बना सके। लेकिन नेपाल के पास इस तरह की तकनीकी क्षमता नहीं है। सन् 1927 में नेपाल ने पहली रेल का निर्माण किया था और यह भारत की सीमा के करीब था। साल 2011 तक यहां पर कोई रेल विभाग नहीं था। रेल विभाग तो तैयार हो गया लेकिन अभी तक इंजीनियर्स की नियुक्ति नहीं की गई है। ऐसे में इस प्रोजेक्ट का क्या होगा कोई नहीं जानता है।