मास्को/नई दिल्ली
कई वर्षों के लंबे इंतजार के बाद भारत और रूस के बीच में AK-203 राइफल को लेकर 5100 करोड़ रुपये के रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर हो गया है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे के बीच इस समझौते पर हस्ताक्षर हुआ है। रूस की एके-203 राइफल दुनिया की सबसे घातक और सबसे सफल राइफल AK-47 का सबसे आधुनिक संस्करण है। इस डील के तहत भारतीय सेना और अर्द्धसैनिक बलों के लिए अमेठी की फैक्ट्री में 6 लाख राइफलें बनाई जाएंगी। ये राइफलें सेना में भारत की स्वदेशी राइफल इंसास की जगह लेंगी। आइए समझते हैं इंसास से क्यों बेहतर है रूसी राइफल.... भारतीय सेना लंबे समय इंसास राइफल की दिक्कतों से जूझ रही थी। इंसास को वर्ष 1990 के दशक में सेना में शामिल किया गया था। इंसास राइफल को डीआरडीओ ने बनाया था। कई वर्षों से भारतीय सेना और पैरामिलिटरी फोर्स इंसास राइफल का विकल्प खोज रही थी। दरअसल, इंसास के जाम हो जाने, तीन राउंड के बाद राइफल के ऑटोमैटिक मोड में चले जाने और युद्ध के समय राइफल चलाने वालों की आंख में तेल चले जाने की समस्या हो रही थी। यहां तक कि 1999 के करगिल युद्ध के समय भी सैनिकों ने इंसास के जाम हो जाने से मैगजीन के टूट जाने की शिकायत की थी। यह समस्या तब और बढ़ जाती थी जब तापमान जमा देने वाला होता था।
इंसास राइफल चलने में बेदम, वजन में है भारी
इंसास की समस्याओं से परेशान होकर जवानों ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों का जवाब देने के लिए इंसास छोड़कर एके-47 या दूसरी इंपोर्टेड बंदूकों का प्रयोग शुरू कर दिया। यहां तक कि सीआरपीएफ ने भी उग्रवाद प्रभावित इलाकों में एके-47 का प्रयोग शुरू कर दिया। पैरा कमांडो, मरीन कमांडो, गरुड़ कमांडो (भारतीय वायु सेना की स्पेशल फोर्स), यहां तक कि नैशनल सिक्यॉरिटी गार्ड ने भी जर्मन या इजराइल की ऑटोमैटिक राइफल हेकलर ऐंड कोच एमपी 5 गन और टावोर राइफल्स पर विश्वास जताया।
यहां तक कि स्पेशल प्रॉटेक्शन ग्रुप ने भी पीएम सहित वीवीआईपी सुरक्षा में लगे जवानों को बेल्जियम मेड एफएन एफ-2000 राइफल्स दीं। इंसास से फायर करने पर वह सिर्फ चार सौ मीटर तक ही वार करती है और एक बार में मैगजीन सिर्फ बीस राउंड फायर करती है इसे आसानी से गिना जा सकता है कि कितने फायर किए जा चुके और कितनी बुलेट्स अभी बाकी हैं। यहां तक कि यह बहुत बड़ी और भारी राइफल है। बिना मैगजीन और किर्च के ही इसका वजन 4.15 किलो होता है जिससे इसे लाने ले जाने में दिक्कत होती है। वहीं एके-203 राइफल, रूस की कंपनी के साथ मिलकर भारत में अमेठी में बनेगी। इसका वजन 4 किलोग्राम है।
एके-203 से 400 मीटर के दायरे में साफ होगा दुश्मन
आर्मी के सर्विंग मेजर जनरल इस प्रॉजेक्ट को हेड करेंगे। AK-203 राइफल AK-47 सीरीज का ही अडवांस वर्जन है। पहले इस राइफल का नाम AK-103M था लेकिन बाद में इसे बदलकर AK-203 कर दिया गया। इसकी मैगजीन में तीस गोलियां आएंगी। यह चार सौ मीटर के दायरे पर सौ फीसदी वार करेगी। यह इंसास राइफल की अपेक्षा बहुत ज्यादा हल्की और छोटी होगी। यह ज्यादा स्टेबल, भरोसेमंद तो है ही और इसकी एक्युरेसी भी ज्यादा है। इसका होल्ड भी बेहतर है। इस राइफल में पिकेटिनी रेल (राइफल के ऊपर लगा एक प्लेटफॉर्म, जिसमें नाइट विजन डिवाइस या दूर तक देखने के लिए डिवाइस लगाई जा सकती है) भी है। इंसास में जहां 5.56×45mm कैलिबर की गोलियों का इस्तेमाल होता है, वहीं रूसी राइफल 7.62×39mm की गोलियां दागेगी जिससे दुश्मन का सफाया करना आसान होगा।
एक सेकंड में चलेंगी दस गोलियां
इस राइफल से एक मिनट में छह सौ गोलियां मारी जा सकेंगी। मतलब एक सेकंड में दस गोलियां निकलेंगी। इसे ऑटोमेटिक और सेमी ऑटोमेटिक दोनों तरह से प्रयोग किया जा सकेगा। एके सिरीज की इस राइफल की सबसे ज्यादा खास बात यह है कि यह कभी जाम नहीं होगी। यह किसी भी तरह के मौसम में काम करेगी चाहे भारी ठंड हो, गर्मी हो या फिर बारिश। राइफल के ऊपर भरोसा जताते हुए पचास देशों की सेना एके-47 प्रयोग कर रही हैं। वहीं तीस से ज्यादा देशों ने इस रूसी राइफल एके-203 को बनाने का लाइसेंस लिया है। इस राइफल को बनाने में ज्यादा शेयर ऑर्डिनेंस फैक्ट्री का होगा। इसमें ऑर्डिनेंस के शेयर 50.5 फीसदी हैं जबकि रशिया की कंपनी को 49.5 फीसदी शेयर दिए गए हैं।
कई वर्षों के लंबे इंतजार के बाद भारत और रूस के बीच में AK-203 राइफल को लेकर 5100 करोड़ रुपये के रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर हो गया है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे के बीच इस समझौते पर हस्ताक्षर हुआ है। रूस की एके-203 राइफल दुनिया की सबसे घातक और सबसे सफल राइफल AK-47 का सबसे आधुनिक संस्करण है। इस डील के तहत भारतीय सेना और अर्द्धसैनिक बलों के लिए अमेठी की फैक्ट्री में 6 लाख राइफलें बनाई जाएंगी। ये राइफलें सेना में भारत की स्वदेशी राइफल इंसास की जगह लेंगी। आइए समझते हैं इंसास से क्यों बेहतर है रूसी राइफल....
इंसास राइफल चलने में बेदम, वजन में है भारी
इंसास की समस्याओं से परेशान होकर जवानों ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों का जवाब देने के लिए इंसास छोड़कर एके-47 या दूसरी इंपोर्टेड बंदूकों का प्रयोग शुरू कर दिया। यहां तक कि सीआरपीएफ ने भी उग्रवाद प्रभावित इलाकों में एके-47 का प्रयोग शुरू कर दिया। पैरा कमांडो, मरीन कमांडो, गरुड़ कमांडो (भारतीय वायु सेना की स्पेशल फोर्स), यहां तक कि नैशनल सिक्यॉरिटी गार्ड ने भी जर्मन या इजराइल की ऑटोमैटिक राइफल हेकलर ऐंड कोच एमपी 5 गन और टावोर राइफल्स पर विश्वास जताया।
यहां तक कि स्पेशल प्रॉटेक्शन ग्रुप ने भी पीएम सहित वीवीआईपी सुरक्षा में लगे जवानों को बेल्जियम मेड एफएन एफ-2000 राइफल्स दीं। इंसास से फायर करने पर वह सिर्फ चार सौ मीटर तक ही वार करती है और एक बार में मैगजीन सिर्फ बीस राउंड फायर करती है इसे आसानी से गिना जा सकता है कि कितने फायर किए जा चुके और कितनी बुलेट्स अभी बाकी हैं। यहां तक कि यह बहुत बड़ी और भारी राइफल है। बिना मैगजीन और किर्च के ही इसका वजन 4.15 किलो होता है जिससे इसे लाने ले जाने में दिक्कत होती है। वहीं एके-203 राइफल, रूस की कंपनी के साथ मिलकर भारत में अमेठी में बनेगी। इसका वजन 4 किलोग्राम है।
एके-203 से 400 मीटर के दायरे में साफ होगा दुश्मन
आर्मी के सर्विंग मेजर जनरल इस प्रॉजेक्ट को हेड करेंगे। AK-203 राइफल AK-47 सीरीज का ही अडवांस वर्जन है। पहले इस राइफल का नाम AK-103M था लेकिन बाद में इसे बदलकर AK-203 कर दिया गया। इसकी मैगजीन में तीस गोलियां आएंगी। यह चार सौ मीटर के दायरे पर सौ फीसदी वार करेगी। यह इंसास राइफल की अपेक्षा बहुत ज्यादा हल्की और छोटी होगी। यह ज्यादा स्टेबल, भरोसेमंद तो है ही और इसकी एक्युरेसी भी ज्यादा है। इसका होल्ड भी बेहतर है। इस राइफल में पिकेटिनी रेल (राइफल के ऊपर लगा एक प्लेटफॉर्म, जिसमें नाइट विजन डिवाइस या दूर तक देखने के लिए डिवाइस लगाई जा सकती है) भी है। इंसास में जहां 5.56×45mm कैलिबर की गोलियों का इस्तेमाल होता है, वहीं रूसी राइफल 7.62×39mm की गोलियां दागेगी जिससे दुश्मन का सफाया करना आसान होगा।
एक सेकंड में चलेंगी दस गोलियां
इस राइफल से एक मिनट में छह सौ गोलियां मारी जा सकेंगी। मतलब एक सेकंड में दस गोलियां निकलेंगी। इसे ऑटोमेटिक और सेमी ऑटोमेटिक दोनों तरह से प्रयोग किया जा सकेगा। एके सिरीज की इस राइफल की सबसे ज्यादा खास बात यह है कि यह कभी जाम नहीं होगी। यह किसी भी तरह के मौसम में काम करेगी चाहे भारी ठंड हो, गर्मी हो या फिर बारिश। राइफल के ऊपर भरोसा जताते हुए पचास देशों की सेना एके-47 प्रयोग कर रही हैं। वहीं तीस से ज्यादा देशों ने इस रूसी राइफल एके-203 को बनाने का लाइसेंस लिया है। इस राइफल को बनाने में ज्यादा शेयर ऑर्डिनेंस फैक्ट्री का होगा। इसमें ऑर्डिनेंस के शेयर 50.5 फीसदी हैं जबकि रशिया की कंपनी को 49.5 फीसदी शेयर दिए गए हैं।