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आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) विकसित फर्जी फिंगरप्रिंट से बायोमेट्रिक प्रणाली में सेंध संभव

क्या आपको लगता है कि बायोमेट्रिक प्रणाली में सेंध नहीं लगाई जा सकती है? अगर आपका जवाब हां है तो हो सकता है कि आप गलत हों। वैज्ञानिकों ने आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का एक ऐसा उपकरण तैयार किया है जो इसमें सेंध लगा सकता है।

भाषा 26 Nov 2018, 2:22 pm
न्यू यॉर्क
नवभारतटाइम्स.कॉम प्रतीकात्मक तस्वीर।
प्रतीकात्मक तस्वीर।

वैज्ञानिकों ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशल इंटेलिजेंस या एआई) का एक ऐसा उपकरण विकसित किया है जो मनुष्य की अंगुलियों के फर्जी निशान से बायोमेट्रिक सत्यापन प्रणाली में सेंध लगाने में सक्षम हो सकता है। फिंगरप्रिंट सत्यापन प्रणाली को व्यापक रूप से विश्वसनीय माना जाता है जो बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली का सर्वत्र प्रयोग होने वाला तरीका है। हालांकि, अमेरिका की न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने इन प्रणालियों में भी सेंध लग जाने का आश्चर्यजनक तरीके का खुलासा किया है।

विशेषज्ञों ने एक तटस्थ नेटवर्क का इस्तेमाल करते हुए जाली फिंगरप्रिंट विकसित किया जो पांच लोगों में से एक के बायोमेट्रिक सत्यापन को गलत होने के बावजूद सही ठहराने के लिए भ्रमित कर सकता है। जिस तरह से कोई मास्टर की (चाबी) किसी इमारत के हर दरवाजे का ताला खोलने में सक्षम होती है, ठीक उसी तरह ‘डीप मास्टर प्रिंट्स’ में एआई का इस्तेमाल करते हुए फिंगरप्रिंट के डेटाबेस में बड़ी संख्या में संग्रहित प्रिंट से मिलान कराके इसे सत्यापित कराने का प्रयास किया गया है। यह अध्ययन न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी के प्रफेसर नासिर मेमन के नेतृत्व में पहले हुए एक अनुसंधान के आधार पर चल रहा है।

मेमन ने ‘मास्टर प्रिंट’ नामक तकनीक इजाद की थी जिसमें पहचान के लिए अंगुलियों के निशानों का आंशिक इस्तेमाल ही किया जाता है। शोध छात्र फिलिप बोंट्रेजर के अनुसार, 'अब भी फिंगरप्रिंट आधारित सत्यापन प्रणाली किसी उपकरण या तंत्र को सुरक्षित रखने का मजबूत तरीका है, लेकिन इस समय अधिकतर प्रणालियों में ऐसा कोई तरीका नहीं है जो यह सत्यापित कर सके कि अंगुलि के निशान या अन्य बायोमेट्रिक किसी वास्तविक व्यक्ति के हैं या प्रतिकृति के।' उन्होंने कहा, 'ये प्रयोग बहुआयामी सत्यापन की जरूरत को रेखांकित करते हैं और कृत्रिम तरीके से अंगुलियों के निशानों में सेंध लगाने की क्षमता को लेकर उपकरण निर्माताओं के लिए यह चेतावनी के रूप में देखा जाना चाहिए।'

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