वॉशिंगटन
हमारी दुनिया एक से बढ़कर एक अजूबे से भरी हुई है। इंसान की पहुंच आज मंगल ग्रह से भी आगे है लेकिन धरती पर मिलने वाला एक नन्हा सा जीव रहस्य बना हुआ है। ये हैं बर्फ में पाए जाने वाले कीड़े जिनके हाल ही में वॉशिंगटन के पैराडाइज ग्लेशियर में दिखने के बाद चर्चा तेज हो गई है कि कैसे इनकी बेहद कम स्टडी की जा सकी है। हालांकि, वॉशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी के ग्लेशियर बायॉलजिस्ट स्कॉट हॉटलिंग अपने साथ पीटर विंबर्गर के साथ कई साल से इन्हें स्टडी कर रहे हैं।
महीन काले धागे जैसे दिखने वाले ये कीड़े ग्लेशियर जैसे ठंडे पर्यावरण में बर्फ में छिपे होते हैं। ये 0 डिग्री सेल्सियस पर आराम से रह लेते हैं लेकिन तापमान गिरने पर मर जाते हैं। काई और बैक्टीरिया खाने वाले ये कीड़े बिना कुछ खाए भी एक साल तक जीवित रह सकते हैं। अभी तक यह पता नहीं लगाया जा सका है कि ये बर्फ में पहुंचे कैसे और ऐसे हालात में ये बढ़ते कैसे रहते हैं।
इन्हें स्टडी करना इसलिए दिलचस्प है क्योंकि इस तरह के पर्यावरण में जीवन के रहस्यों को समझकर मंगल ग्रह जैसे जीवन के संभावित ठिकानों को समझने में मदद मिल सकती है। चिंता की बात यह है कि दुनियाभर के ग्लेशियर पिघल रहे हैं। अगर ये कीड़े बदलते पर्यावरण के साथ चल नहीं पाए, तो ये खत्म भी हो सकते हैं। हालांकि, स्कॉट को एक संभावना यह भी लगती है कि कहीं इन्हीं कीड़ों की वजह से ग्लेशियर्स की बर्फ तेजी से तो नहीं पिघल रही?
दरअसल, ऐसा माना जाता है कि गाढ़े रंग की काई से बर्फ तेजी से पिघलती है। ये कीड़े भी काले रंग के हैं, इसलिए हो सकता है कि ये भी गर्मी सोख रहे हैं जिससे बर्फ पिघल रही है। हालांकि, अभी तक इन्हें लेकर कोई ठोस जानकारी नहीं मिल सकी है और ये कीड़े बर्फीली चोटियों का अनसुलझा सवाल बने हुए हैं।
हमारी दुनिया एक से बढ़कर एक अजूबे से भरी हुई है। इंसान की पहुंच आज मंगल ग्रह से भी आगे है लेकिन धरती पर मिलने वाला एक नन्हा सा जीव रहस्य बना हुआ है। ये हैं बर्फ में पाए जाने वाले कीड़े जिनके हाल ही में वॉशिंगटन के पैराडाइज ग्लेशियर में दिखने के बाद चर्चा तेज हो गई है कि कैसे इनकी बेहद कम स्टडी की जा सकी है। हालांकि, वॉशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी के ग्लेशियर बायॉलजिस्ट स्कॉट हॉटलिंग अपने साथ पीटर विंबर्गर के साथ कई साल से इन्हें स्टडी कर रहे हैं।
महीन काले धागे जैसे दिखने वाले ये कीड़े ग्लेशियर जैसे ठंडे पर्यावरण में बर्फ में छिपे होते हैं। ये 0 डिग्री सेल्सियस पर आराम से रह लेते हैं लेकिन तापमान गिरने पर मर जाते हैं। काई और बैक्टीरिया खाने वाले ये कीड़े बिना कुछ खाए भी एक साल तक जीवित रह सकते हैं। अभी तक यह पता नहीं लगाया जा सका है कि ये बर्फ में पहुंचे कैसे और ऐसे हालात में ये बढ़ते कैसे रहते हैं।
इन्हें स्टडी करना इसलिए दिलचस्प है क्योंकि इस तरह के पर्यावरण में जीवन के रहस्यों को समझकर मंगल ग्रह जैसे जीवन के संभावित ठिकानों को समझने में मदद मिल सकती है। चिंता की बात यह है कि दुनियाभर के ग्लेशियर पिघल रहे हैं। अगर ये कीड़े बदलते पर्यावरण के साथ चल नहीं पाए, तो ये खत्म भी हो सकते हैं। हालांकि, स्कॉट को एक संभावना यह भी लगती है कि कहीं इन्हीं कीड़ों की वजह से ग्लेशियर्स की बर्फ तेजी से तो नहीं पिघल रही?
दरअसल, ऐसा माना जाता है कि गाढ़े रंग की काई से बर्फ तेजी से पिघलती है। ये कीड़े भी काले रंग के हैं, इसलिए हो सकता है कि ये भी गर्मी सोख रहे हैं जिससे बर्फ पिघल रही है। हालांकि, अभी तक इन्हें लेकर कोई ठोस जानकारी नहीं मिल सकी है और ये कीड़े बर्फीली चोटियों का अनसुलझा सवाल बने हुए हैं।