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Diamond Rain Planet: सौरमंडल के इन दो नीले ग्रहों पर हो रही हीरे की बारिश, चाह कर भी धरती पर नहीं ला सकता इंसान, जानें वजह

Diamond Rain Planet: हमारे सौर मंडल के दो ग्रहों पर हीरे की बारिश होती है। ये दो ग्रह यूरेनस और नेपच्यून हैं। इन ग्रहों पर हीरों के कोई बादल नहीं हैं। बल्कि एक वैज्ञानिक प्रक्रिया के कारण ये हीरे इन ग्रहों पर मौजूद हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि कभी भी हम इन ग्रहों से हीरे नहीं ला सकेंगे।

Curated byयोगेंद्र मिश्रा | नवभारतटाइम्स.कॉम 3 Jul 2022, 7:10 pm
वाशिंगटन: हमारे सौर मंडल में आठ ग्रह हैं। इन आठ ग्रहों में से हमारा ज्यादातर फोकस मंगल, बृहस्पति और शनि ग्रह पर होता है। सौरमंडल के बाहर तमाम तरह के अजीबोगरीब ग्रह हैं। कई ग्रह ऐसे हैं जहां रात में आग की बारिश होती है। लेकिन क्या कभी आपने हीरे की बारिश के बारे में सुना है। हमारे सौरमंडल में ही दो ऐसे ग्रह हैं जिन पर हीरे की बारिश होती है। ये ग्रह यूरेनस और नेपच्यून हैं। सुनने में भले ही ये आपको किसी फिल्म की तरह लगे लेकिन ये सच है।
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सोरमंडल के दो ग्रहों पर होती है हीरे की बारिश।


NASA के ग्रेविटी एसिस्ट बातचीत में शोधकर्ता नाओमी रोवे-गर्नी ने बताया है कि इन ग्रहों पर हीरे की बारिश होती है। हीरे की बारिश सुन कर आप इसे पृथ्वी पर होने वाली बारिश जैसा मत समझ लीजिएगा, जिसमें जलवाष्प वायुमंडल में इकट्ठा होकर ठंडे होते हैं और फिर से पानी के रूप में बरसते हैं। ये हीरे पहले से किसी बादल में मौजूद नहीं होते हैं, बल्कि एक वैज्ञानिक प्रक्रिया के कारण बनते हैं।
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कैसे बनते हैं हीरे
नाओमी रोवे-गर्नी ने बातचीत में कहा, 'मीथेन गैस के कारण ये दोनों ग्रह नीले दिखाई देते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि मीथेन में कार्बन होता है। लेकिन इन ग्रहों पर वायुमंडलीय दबाव बहुत ज्यादा है। इस कारण मीथेन से कार्बन कई बार अलग हो जाता है और भारी दबाव के कारण ये क्रिस्टल बनने लगते हैं जो एक हीरा होता है। ये हीरे लगातार जमा होते रहतें हैं और भारी होकर ये सतह पर गिरते हैं। अगर हम ग्रह पर मौजूद रहें तो ये देखने में हीरे की बारिश जैसा ही लगेगा।
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ओले की ही तरह बनते हैं हीरेनाओमी ने आगे कहा कि ये एक ऐसी बारिश है जिसे हम देख नहीं सकते हैं, क्योंकि यहां के वायुमंडल में भारी दबाव है। इंसान यहां इसी कारण कभी नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि अगर ये हीरे हैं भी तो हम कभी इन्हें ला नहीं सकते हैं। बता दें कि मीथेन का रासायनिक नाम CH4 है। वातावरण के दबाव के चलते इससे कार्बन यानी C अलग हो जाता हे। अगर पृथ्वी के हिसाब से देखें तो जिस तरह वायुमंडलीय दबाव के कारण बारिश की बूंदें ओला बनती हैं वैसे ही इन हीरों का निर्माण होता है। पृथ्वी और नेपच्यून की दूरी 4.4 अरब किमी दूर है। वहीं यूरेनस की दूरी 3 अरब किमी है।
लेखक के बारे में
योगेंद्र मिश्रा
नवभारत टाइम्स में डिजिटल कंटेंट प्रोड्यूसर योगेंद्र मिश्र ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया है। इन्हें डिजिटल पत्रकारिता में लगभग 5 साल का अनुभव है। न्यूज नेशन, टीवी 9 भारतवर्ष से होते हुए वह अब नवभारत टाइम्स में अपना सफर जारी रखे हुए हैं। देश विदेश और साइंस से जुड़ी खबरों में इन्हें खास रुचि है।... और पढ़ें

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