जकार्ता : एक रहस्यमय रेखा इंडोनेशिया को दो हिस्सों में बांटती है। इस लाइन के दोनों तरफ जानवरों की अलग-अलग प्रजातियां पाई जाती हैं जो अपने आप में आश्चर्यजनक है। लंबे समय से इसके पीछे के रहस्य को जानने की कोशिश की जा रही थी लेकिन अब माना जा रहा है कि वैज्ञानिकों ने आखिरकार इंडोनेशिया से होकर गुजरने वाली वालेस रेखा (Wallace Line) की पहेली को सुलझा लिया है। यह अदृश्य लेकिन प्रभावशाली रेखा सदियों से शोधकर्ताओं की हैरानी का कारण बनी हुई है। इसे पहली बार ब्रिटिश प्रकृतिवादी अल्फ्रेड रसेल वालेस ने 160 साल से भी अधिक समय पहले देखा था। एक नया अध्ययन इसकी उत्पत्ति और इसके पीछे के कारकों के बारे में बताता है।
आप में से कई लोगों ने प्रसिद्ध प्रकृतिवादी चार्ल्स डार्विन के बारे में सुना होगा। लेकिन बहुत से लोग अल्फ्रेड रसेल वालेस को नहीं जानते होंगे। ब्रिटिश प्रकृतिवादी वालेस भी डार्विन के ही दौर के एक वैज्ञानिक थे। उन्हें सबसे अधिक 'वालेस लाइन' के लिए जाना जाता है। 19वीं शताब्दी में एक खोज के दौरान वालेस ने इंडोनेशियाई द्वीपों बोर्नियो और सुलावेसी के बीच एक अदृश्य सीमा के दोनों ओर जानवरों की प्रजातियों में आश्चर्यजनक अंतर देखा।
लाइन के दोनों तरफ अलग-अलग जानवर
पश्चिम में, बोर्नियो, जावा और सुमात्रा जैसे द्वीप दक्षिण पूर्व एशिया में पाए जाने वाले जानवरों का घर हैं। लेकिन जब आप सुलावेसी, न्यू गिनी और मोलुकास जैसे द्वीपों की ओर पूर्व में बढ़ते हैं तो यहां ऑस्ट्रेलिया में पाई जाने वाली प्रजातियां नजर आती हैं। वालेस लाइन जानवरों और पौधों के दो अलग-अलग क्षेत्रों को दिखाती है। इस रेखा के बारे में दिलचस्प बात यह है कि यह द्वीपों की भौगोलिक निकटता के बावजूद मौजूद है। इतने करीब के क्षेत्रों के बीच प्रजातियों में क्रमिक बदलाव की उम्मीद तो की जा सकती है लेकिन यहां ऐसा नहीं है।
महाद्वीपीय टकराव से पैदा हुए इंडोनेशिया के द्वीप
जानवरों के बीच इस स्पष्ट बंटवारे ने एक सदी से भी अधिक समय से वैज्ञानिकों को हैरान कर रखा है। एक नया अध्ययन बताता है कि करीब 35 मिलियन साल पहले टेक्टोनिक गतिविधियों के कारण हुए अत्यधिक जलवायु परिवर्तन ने वालेस लाइन के निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी। लगभग उसी समय, ऑस्ट्रेलिया अंटार्कटिका से दूर चला गया और एशिया से टकराया, जिससे भूगोल और पृथ्वी की जलवायु में भी बड़े परिवर्तन हुए। महाद्वीपीय टकराव ने इंडोनेशिया के ज्वालामुखीय द्वीपों को जन्म दिया, जबकि अंटार्कटिका के आसपास के गहरे महासागर को भी खोल दिया।
जलवायु ने जानवरों को किया प्रभावित
रिसर्च से पता चला है कि बदलती जलवायु ने वालेस रेखा के दोनों किनारों पर प्रजातियों को अलग-अलग तरीके से प्रभावित किया। ऑस्ट्रेलिया और एशिया के विलय ने ग्लोबल कूलिंग को ट्रिगर किया जिससे बड़े पैमाने पर प्रजातियां विलुप्त हो गईं। नए-नए बने इंडोनेशियाई द्वीपों पर जलवायु जीवन के लिए अपेक्षाकृत अनुकूल थी। एशियाई जीव पहले से इन परिस्थितियों के प्रति अनुकूलित थे जिससे उन्हें ऑस्ट्रेलिया में बसने में मदद मिली। लेकिन ऑस्ट्रेलियाई प्रजातियों के मामले में ऐसा नहीं था। वे ठंडी और शुष्क जलवायु में विकसित हुए थे इसलिए वे एशिया से पलायन करने वाले जीवों की तुलना में उष्णकटिबंधीय द्वीपों पर पैर जमाने में कम सफल रहे।
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आप में से कई लोगों ने प्रसिद्ध प्रकृतिवादी चार्ल्स डार्विन के बारे में सुना होगा। लेकिन बहुत से लोग अल्फ्रेड रसेल वालेस को नहीं जानते होंगे। ब्रिटिश प्रकृतिवादी वालेस भी डार्विन के ही दौर के एक वैज्ञानिक थे। उन्हें सबसे अधिक 'वालेस लाइन' के लिए जाना जाता है। 19वीं शताब्दी में एक खोज के दौरान वालेस ने इंडोनेशियाई द्वीपों बोर्नियो और सुलावेसी के बीच एक अदृश्य सीमा के दोनों ओर जानवरों की प्रजातियों में आश्चर्यजनक अंतर देखा।
लाइन के दोनों तरफ अलग-अलग जानवर
पश्चिम में, बोर्नियो, जावा और सुमात्रा जैसे द्वीप दक्षिण पूर्व एशिया में पाए जाने वाले जानवरों का घर हैं। लेकिन जब आप सुलावेसी, न्यू गिनी और मोलुकास जैसे द्वीपों की ओर पूर्व में बढ़ते हैं तो यहां ऑस्ट्रेलिया में पाई जाने वाली प्रजातियां नजर आती हैं। वालेस लाइन जानवरों और पौधों के दो अलग-अलग क्षेत्रों को दिखाती है। इस रेखा के बारे में दिलचस्प बात यह है कि यह द्वीपों की भौगोलिक निकटता के बावजूद मौजूद है। इतने करीब के क्षेत्रों के बीच प्रजातियों में क्रमिक बदलाव की उम्मीद तो की जा सकती है लेकिन यहां ऐसा नहीं है।महाद्वीपीय टकराव से पैदा हुए इंडोनेशिया के द्वीप
जानवरों के बीच इस स्पष्ट बंटवारे ने एक सदी से भी अधिक समय से वैज्ञानिकों को हैरान कर रखा है। एक नया अध्ययन बताता है कि करीब 35 मिलियन साल पहले टेक्टोनिक गतिविधियों के कारण हुए अत्यधिक जलवायु परिवर्तन ने वालेस लाइन के निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी। लगभग उसी समय, ऑस्ट्रेलिया अंटार्कटिका से दूर चला गया और एशिया से टकराया, जिससे भूगोल और पृथ्वी की जलवायु में भी बड़े परिवर्तन हुए। महाद्वीपीय टकराव ने इंडोनेशिया के ज्वालामुखीय द्वीपों को जन्म दिया, जबकि अंटार्कटिका के आसपास के गहरे महासागर को भी खोल दिया। जलवायु ने जानवरों को किया प्रभावित
रिसर्च से पता चला है कि बदलती जलवायु ने वालेस रेखा के दोनों किनारों पर प्रजातियों को अलग-अलग तरीके से प्रभावित किया। ऑस्ट्रेलिया और एशिया के विलय ने ग्लोबल कूलिंग को ट्रिगर किया जिससे बड़े पैमाने पर प्रजातियां विलुप्त हो गईं। नए-नए बने इंडोनेशियाई द्वीपों पर जलवायु जीवन के लिए अपेक्षाकृत अनुकूल थी। एशियाई जीव पहले से इन परिस्थितियों के प्रति अनुकूलित थे जिससे उन्हें ऑस्ट्रेलिया में बसने में मदद मिली। लेकिन ऑस्ट्रेलियाई प्रजातियों के मामले में ऐसा नहीं था। वे ठंडी और शुष्क जलवायु में विकसित हुए थे इसलिए वे एशिया से पलायन करने वाले जीवों की तुलना में उष्णकटिबंधीय द्वीपों पर पैर जमाने में कम सफल रहे।अगर आप दुनिया से जुड़ी खबर का अपडेट वॉट्सऐप से जानना चाहते हैं तो इस लिंक से जुड़ें